7 Best Gautam Buddha Stories In Hindi / गौतम बुद्ध की कहानियां

Gautam Buddha Stories In Hindi

7 Best Gautam Buddha Stories In Hindi / गौतम बुद्ध की कहानियां

7 Best Gautam Buddha Stories In Hindi / गौतम बुद्ध की कहानियां – दोस्तों आज की इस ब्लॉग पोस्ट में मैं आपको गौतम बुद्ध की ऐसी 7 कहानियों (Best Gautam Buddha Stories In Hindi) से अवगत कराऊंगी जिन कहानियों में शायद आपको आपकी कई समस्याओं का हल मिल जाए।

गौतम बुद्ध की प्रेरणास्पद कहानियाँ ( Top 7 Gautam Buddha Stories In Hindi) जीवन के महत्वपूर्ण सवालों के उत्तर खोजने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती हैं, इन कहानियों से आप यह भी जानेंगे कि कैसे एक व्यक्ति अपने जीवन को शांति, समृद्धि, और आत्मिक समृप्ति के माध्यम से सफलता की ओर अग्रसर हो सकता है।

Gautam Buddha Stories In Hindi For Success आपको जीवन के बारे में बोहोत कुछ सिखा सकती है आज के इस blog post पर अंत तक बने रहें मुझे यकीन है आप यहाँ से बोहोत कुछ सीख कर जायेंगे।

गौतम बुद्ध का जीवन परिचय (Gautam Buddha Stories In Hindi For Life)

गौतम बुद्ध, जिन्हें भगवान बुद्ध, महात्मा बुद्ध, सिद्धार्थशाक्यमुनि नाम से भी जाना जाता है। दुनिया के एक महान धार्मिक और दार्शनिक गुरु थे। गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी नामक स्थान पर लगभग 563 ईसा पूर्व में हुआ था

और उनकी मृत्यु – 483 ईसा पूर्व में हुई, गौतम बुद्ध एक आध्यात्मिक शिक्षक थे जो ईसा पूर्व छठी और पाँचवी शताब्दी के बीच भारत में रहे थे। उनके पिता का नाम शुद्धोधन था और माता का नाम माया था। गौतम बुद्ध का बचपन बहुत ही आम था। बुद्ध का जन्म एक धनी परिवार में हुआ था,

वे राजकुमार के रूप में पले थे और उन्हें सभी प्रकार की सुख-समृद्धि मिलती थी। हालांकि, उन्होंने जीवन के अस्थायीता की समझ पाई और एक दिन उन्होंने पूरे संसार की दुखभरी स्थिति का आभास किया। एक दिन वे अपनी सारी धन संपत्ति और स्थिति का त्यागकर

संसार को जन्म-मरण और दुखों से मुक्ति दिलाने के सत्य मार्ग एवं दिव्य ज्ञान की खोज में वन की ओर निकल गए जहां जाकर वह एक पेड़ के नीचे बैठ गए और अत्यधिक तपस्या और ध्यान की प्रक्रिया में समय व्यतीत करने लगे गौतम बुद्ध ने प्रण किया कि जब तक उन्हें दुख के रहस्य का उत्तर नहीं मिल जाता,

तब तक वह हार नहीं मानेंगे। उन्होंने अनेक साधना और ध्यान की प्रक्रियाओं का अभ्यास किया ताकि वे आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति कर सकें। वर्षों के कठोर ध्यान और अध्ययन के बाद, आखिरकार उन्होंने ज्ञान प्राप्त कर ही लिया, और वे सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध बन गए।

बुद्ध के जीवन के आखरी दिनों में, उन्होंने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया, जिसका मतलब है आत्मा की अनंत शांति की प्राप्ति। उनका यह जीवन संयम, उपकार, शांति, और आध्यात्मिकता की शिक्षा से भरा था।

1. हर काम में सफलता पाने का महामंत्र – Gautam Buddha Stories In Hindi For Success

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एक पिता, अपने पुत्र से बहुत परेशान था। उसका पुत्र, जब भी कोई काम करने जाता, तो उस काम को आधा-अधूरा छोड़कर ही वापस आ जाता और कहता, “मेरी हालात ठीक नहीं है, मुझे अच्छा नहीं लग रहा।

अगर मेरे हालात ठीक होते तो मैं काम पूरा कर देता।” वह हमेशा ऐसे ही बहाने बनाता रहता और हर काम अधूरा ही छोड़ देता। उस पिता ने अपने पुत्र से ना जाने कितने ही काम कराने की कोशिश की, लेकिन पुत्र था कि कोई भी काम पूरा ही नहीं करता।

वह हमेशा परिस्थितियों में दोष निकालने में ही लगा रहता। एक दिन उसने अपने पिता से कहा, “अगर आप हमारे पड़ोसी के पिता जैसे होते तो आज मैं भी उनके बेटे जैसा कामयाब होता। मैंने गलत घर में जन्म ले लिया।

मैं पड़ोस में पैदा होता तो मेरी यह दशा नहीं होती।” यह सुनते ही पिता का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया, और उन्होंने अपने पुत्र को धक्के मार कर घर से निकाल दिया, और कहा, “इस घर में वापस तभी आना जब तुम कोई काम पूरा करने लायक बन जाओ।”

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पुत्र ने कहा, “अगर मेरे हालात मेरे हिसाब से होते तो सारे काम पूरे कर देता। काश मैं पड़ोस के घर में ही पैदा होता, तो मुझे सारी सुविधाएं मिलती जो आप मुझे नहीं दे पाए।” आपकी तरह नहीं की, आधी-अधूरी चीजें दे दी, और कहा, “इसे पूरी कर लो।”

वह पुत्र अपने पिता का घर छोड़कर चला गया। उसे लगा कि उसके पिता इसी तरह छोड़ देने लायक ही हैं। वह उसके किसी काम के नहीं है। वह अपना नगर छोड़कर दूर निकल गया।

उसके पास खाने-पीने का सामान नहीं था, और उसे भूख और प्यास भी लग रही थी। दूर-दूर तक भी उसे पानी नजर नहीं आ रहा था। चलते-चलते एक जगह उसे आम का पेड़ दिखाई दिया।

वह आम का पेड़ आमों से लधा पड़ा था। उसने सोचा कि “मैं इस पेड़ से आम तोड़कर खा लेता हूँ”। तब उसने आम तोड़ने की कोशिश की, लेकिन सारे आम उसकी पंहुच से बहुत दूर थे।

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अंतत वह एक भी आम नहीं तोड़ पाया और नीचे बैठ गया, और पेड़ से आम गिरने का इंतजार करने लगा। बहुत देर हो गई, लेकिन कोई भी आम नहीं गिरा।

उधर से एक भिक्षु निकल रहे थे। उन्होंने उस लड़के को आम के पेड़ के नीचे बैठकर आमों की तरफ टकटकी बांधे देखा। तो भिक्षु ने उस लड़के से पूछा, “क्या कर रहे हो? आम चाहिए तो पेड़ पर चढ़कर तोड़ क्यों नहीं लेते, या पत्थर मारकर गिरा दो?” ऐसे घूरते रहने से तो आम नीचे नहीं गिरेगा।

लड़के ने कहा, “अगर मैं पेड़ पर चढ़ जाऊं तो नीचे गिर सकता हूं, और अगर मैंने पत्थर मारा तो हो सकता है वह पत्थर मुझे ही लग जाए। इसलिए मैं यहां बैठा हूं। कभी कोई ना कोई आम तो पेड़ से गिरेगा।”

भिक्षु ने कहा, “और अगर कोई आम गिरा ही नहीं तो क्या, यूं ही भूखे बैठे रहोगे?”

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लड़के ने कहा, “आप सही कहते हैं। वैसे तो यहां रोज आम गिरते होंगे, लेकिन क्योंकि आज मैं यहां पर बैठा हूं तो एक भी आम नहीं गिर रहा। मेरा कोई काम पूरा नहीं होता, मेरे सारे काम अधूरे रह जाते हैं।

सारे काम अटक जाते हैं। आप तो ज्ञानी हैं, तो आप ही कुछ ऐसा उपाय बता दीजिए जिससे मेरे सारे काम पूरे हो जाएं, किसी भी काम में कोई बाधा ना आए, और जो भी काम मैं करूं वह सफल होता चला जाए, मुझे किसी भी काम को करने में कोई परेशानी ना आए।”

भिक्षु ने कहा, “एक उपाय है, अगर तुम यह उपाय कर लोगे तो तुम्हारे सारे काम अपने आप ही पूरे होने लगेंगे।” भिक्षु की बात सुनकर लड़का बहुत ही खुश हुआ। उसने कहा, “कृपया कर जल्दी से मुझे वह उपाय बता दीजिए, गुरुदेव।”

भिक्षु ने कहा, “इसके लिए हमें एक जगह जाना होगा, वहीं पर तुम्हें वह उपाय मिल सकता है।” वह लड़का और भिक्षु जैसे ही उस स्थान की ओर साथ में चलने लगे, वैसे ही एक आम पेड़ से टूटकर नीचे गिर गया।

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वह लड़का उस आम को पाकर बहुत खुश हुआ और कहा, “उस उपाय ने तो काम करना भी शुरू कर दिया। कृपया जल्दी चलिए, मुझे वह उपाय चाहिए।” लड़का और भिक्षु साथ में चल दिए। आधा दिन गुजर गया और भिक्षु चलते ही जा रहे थे।

उस लड़के को प्यास लग रही थी, आसपास पानी भी नहीं था। उसने भिक्षु से कहा, “और कितनी दूर जाना है, गुरुदेव? मुझे प्यास लग रही है, क्या आपके पास पानी है?” भिक्षु ने कहा, “मेरे पास पानी नहीं है, लेकिन हाँ, उस पहाड़ के पीछे पानी है।

या तो हम गोल घूम कर जाएं, तो कल सुबह तक उस पानी तक पहुंच जाएंगे, या फिर यहां एक गुफा है, उस गुफा से होकर जाएं, तो कुछ ही देर में हम पानी तक पहुंच जाएंगे।”

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लड़के ने कहा, “तो फिर गुफा से ही चलते हैं। बहुत जोर की प्यास लगी है, मुझे पानी चाहिए, गुरुदेव।” लड़का और वह भिक्षु गुफा की तरफ चले गए। गुफा में इधर-उधर घूमते घूमते बहुत देर हो गई, लेकिन कोई रास्ता नहीं मिल रहा था।

लड़के ने कहा, “आपको रास्ता मालूम भी है या हम यहां पर ऐसे ही भटकते रहेंगे?”

भिक्षु ने कहा, “रास्ता तो मालूम है, लेकिन मिल नहीं रहा है। आज से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ, शायद यह तुम्हारी वजह से हो रहा है, तुम्हारे कोई काम पूरे नहीं होते।

इसी कारण आज मुझे भी रास्ता नहीं मिल रहा है। “तुम यही रुको,” मैं अकेले रास्ता देख कर आता हूं। युवक गुफा में रुक गया, और वह भिक्षु वहां से चला गया। बहुत देर हो गई, लेकिन भिक्षु वापस नहीं आए।

लड़के की हालत प्यास के कारण खराब हो रही थी। लड़का वहां बैठा इंतजार कर रहा था। आखिरकार, लड़के से प्यास सहन नहीं हुई, और उसे लगा की भिक्षु कहीं खो गए हैं। इसलिए वह खुद ही लड़खड़ाता हुआ गुफा में आगे चल पड़ा।

अभी वह कुछ ही कदम चला था की उसे एक रोशनी दिखाई दी। फिर वह और दस कदम आगे चला, और गुफा से बाहर निकल आया। उसके सामने एक बड़ी नदी दिखाई दी। उसने देखा की वह भिक्षु वहीं नदी के किनारे बैठे हुए हैं।

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वह लड़का भाग कर नदी की ओर गया और खूब पानी पिया। फिर वह भिक्षु की ओर आया, और क्रोध में कहा, “आप क्या मुझे मार देना चाहते थे, जो मुझे वहां प्यासा तड़पता छोड़ आए? जब आपको रास्ता मिल ही गया था, तो मुझे वापस लेने क्यों नहीं आए?”

भिक्षु ने कहा, “हमारा रास्ता केवल हमारा ही होता है, किसी और का नहीं। चाहे उस रास्ते में कितनी भी परेशानियां या दुविधाएं आएं, कितनी भी मुश्किलें आएं, हमेसँ अपना रास्ता खुद ही तय करना होता है।”

जब हम इन सभी परिस्थितियों को पार कर लेते हैं, तो हमें नदी अवश्य मिलती है और हमारी प्यास भी बुझ जाती है। लेकिन कुछ लोग होते हैं जो इस आस में रहते हैं कि कोई हमारा हाथ पकड़ कर हमें नदी तक ले जाएगा।

वहीं एक ही जगह बैठे रह जाते हैं और परिस्थितियों को दोष देने लगते हैं। जबकि उनका सफर सिर्फ कुछ कदमों का ही बचा हुआ रहता है। सिर्फ कुछ कदम उन्हें चलना होता है और वह अपनी मंजिल पर पहुंच सकते हैं।

अपना कार्य पूरा कर सकते हैं। लड़के ने कहा, “आप सही कहते हैं, गुरुदेव। आज के बाद मेरे सारे कार्य पूरे होंगे, क्योंकि मैं उन्हें पूरा करूंगा। अब तक तो मैं आधे रास्ते में ही परिस्थितियों के सामने हार मान जाता था।

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लगता था की सब बुरा मेरे साथ ही हो रहा है। लेकिन आज पता चला कि अपने साथ बुरा मैं खुद ही कर रहा था। अपना रास्ता पूरा ना करके। मुझे लगता था की मेरे पिता मेरे पीछे खड़े हैं। रास्ता पूरा ना भी करूं, तो क्या फर्क पड़ेगा?

उन्होंने मुझे समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन मैं नहीं समझ पाया। लेकिन आपने जो आज मुझे उपाय बताया है, उससे मुझे समझ में आ गया है कि हमारा रास्ता हमें ही पूरा करना पड़ता है।

हम खुद उसे पूरा करेंगे तो वह पूरा भी होगा, नहीं करेंगे तो नहीं होगा। बाधाएं तो आती ही हैं, और बाधाओं को पार करने के बाद सफलता मिलती ही है।” वह लड़का उस भिक्षु को प्रणाम कर, वहां से अपने घर वापस लौटा आया और अपने पिता के पास गया।

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पिता ने अपने पुत्र को देखा तो उसे गले लगा लिया और कहा, “तुम कहां चले गए थे, पुत्र? मैंने गुस्से में अवश्य ही तुम्हें डांट दिया था, पर मैं तुम्हारा बुरा नहीं चाहता। तुम कहोगे तो मैं पड़ोसी के पिता की तरह बनकर दिखाऊंगा।”

पुत्र ने कहा, “पिताजी, आप सही थे। आप जैसे हैं मुझे वैसे ही पसंद है। मुझे कोई पड़ोसी के पिता नहीं चाहिए। और आज के बाद मैं कोई कार्य अधूरा नहीं छोड़ूंगा।”

2. फूटी किस्मत को कैसे ठीक करें? – Gautam Buddha Stories In Hindi For Life

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दोस्तों, जब भी हमारे साथ कुछ गलत हो जाता है, तब हम दुखी हो जाते हैं और एक बार जरूर कहते हैं कि मेरी किस्मत ही खराब है। यह हम अपने आप को तसल्ली देने के लिए कहते हैं, कि इसमें मेरा कोई दोष नहीं है।

मेरी किस्मत ही खराब है। तो हम कर क्या सकते हैं? आज की यह कहानी ऐसे ही एक व्यक्ति की कहानी है जो एक भिक्षु से अपनी किस्मत ठीक कराने आया था।

एक समय की बात है, एक बहुत ही महान भिक्षु अपने शिष्यों के साथ एक वन में रहते थे। एक दिन एक व्यक्ति भिक्षु के पास आया और भिक्षु से बोला, “गुरुदेव, मैं बहुत दुखी रहता हूं। मैं जो भी करता हूं, वह सब खराब हो जाता है। सब बिगड़ जाता है।

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मेरी किस्मत मेरा साथ कभी नहीं देती। मैंने सुना है कि आप सभी की समस्याओं का समाधान कर देते हैं। क्या आप मेरी फूटी किस्मत को ठीक कर सकते हैं?”

भिक्षु ने कहा, “फूटी किस्मत? इसे तुमने कहा देखा?”

व्यक्ति बोला, “जब मेरे सभी काम बिगड़ जाते हैं, तो मेरी किस्मत फूटी ही हुई ना। बचपन में मेरे माता-पिता गुजर गए, जैसे तैसे मैंने बहुत दिक्कतों के साथ खुद की परवरिश की।

मैंने जिस लड़की को प्रेम किया, उसने किसी और से विवाह कर लिया। मैंने छोटा सा व्यापार आरम्भ किया था, तो जिस मित्र के साथ मिलकर मैंने व्यापार आरम्भ किया, उसने मेरा व्यापारी ही हड़प लिया।

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मुझे किसी ने बताया कि आप मेरी किस्मत को ठीक कर सकते हैं, उसकी मरम्मत कर सकते हैं। क्या यह सही है? आप कर सकते हैं ना?”

भिक्षु ने कहा, “तो ठीक है, लाओ अपनी किस्मत, अभी मरम्मत कर देता हूं, बिल्कुल ठीक कर देता हूं।”

व्यक्ति ने कहा, “मैं किस्मत को कैसे ला सकता हूं? किस्मत दिखाई नहीं देती।”

भिक्षु ने कहा, “जब किस्मत दिखाई नहीं देती, तो तुम्हें कैसे पता चला कि वह खराब हो गई है? क्या तुमने देखा कि वह खराब है?”

व्यक्ति ने कहा, “खराब है, तभी तो मेरे साथ सब काम गड़बड़ हो जाते है। मेरी जिंदगी में कुछ भी अच्छा नहीं होता। अगर सही होती, तो सब सही होता।”

भिक्षु ने कहा, “तुम ठीक दिखाई देते हो, स्वस्थ दिखाई देते हो, तुम्हारे हाथ पैर भी सही हैं, तुम अभी तक मरे भी नहीं हो। मुझे तो तुम्हारी किस्मत सही ही नजर आती है।

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किस्मत खराब होती तो तुम बीमार होते, या तुम्हारा कोई अंग भंग हो जाता, या तुम मृत्यु को प्राप्त हो जाते। लेकिन ऐसा कुछ भी तो नहीं है। फिर तुम्हारी किस्मत तुम्हे खराब क्यों नजर आ रही है?”

व्यक्ति ने कहा, “आप समझ नहीं रहे हैं। मेरे ऊपर बहुत कर्जा है। लोग रोज मुझे धमकाने मेरे घर आते हैं, जिनसे मैंने कर्जा लिया है। वह मुझे मारने की धमकी देते हैं। मेरा घर भी उन्होंने छीन लिया है। और अभी भी वह मेरे पीछे पड़े हैं। तो ऐसे में मैं कैसे कहूं कि मेरी किस्मत सही है?”

भिक्षु ने कहा, “तो समस्या गंभीर है?”

व्यक्ति ने कहा, “हां, अब आप समझे कि मैं कितने बड़े दुख से गुजर रहा हूं।”

भिक्षु ने कहा, “तो यह ठीक है, तुम्हारी किस्मत अच्छी है कि इस दुख का सामना करने के लिए तुम जीवित हो और जीवन से ही तुम अपनी समस्याओं का हल भी कर सकते हो।”

व्यक्ति ने कहा, “आप समझ नहीं रहे।”

भिक्षु ने कहा, “समझ तुम नहीं रहे हो। मेरे साथ आओ।” वह भिक्षु उस व्यक्ति को अपने साथ एक नदी किनारे ले गया और उसने कहा, “इस नदी को देखो। अगर मैं एक पत्ता इस नदी में गिरा देता हूं, तब वह पत्ता किस दिशा में बहेगा?”

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व्यक्ति ने कहा, “वह नदी की दिशा में ही तो बहेगा।”

भिक्षु ने कहा, “बिल्कुल ठीक। अब बताओ, पत्ते की किस्मत किसके हाथों में है?”

व्यक्ति ने कहा, “इस पत्ते की किस्मत नदी के हाथ में है। वह जहां चाहे इसे ली जा सकती है।”

भिक्षु ने कहा, “लेकिन पत्ता तो मेरे हाथ में है। मैं चाहूं तो इसे नदी में डाल सकता हूं और चाहूं तो नहीं।”

व्यक्ति ने कहा, “तो फिर इसकी किस्मत आपके हाथ में हुई। आप जहाँ चाहे इसे डाल सकते हैं।”

भिक्षु ने कहा, “लेकिन इसकी किस्मत मेरे हाथ में नहीं है। मैं जितना भी चाहूं इस पत्ते को सूखने से नहीं रोक सकता। यह सूख ही जाएगा और बिखर जाएगा। जब तक यह पेड़ पर था, तब तक यह हरा था और इसे जीवन ऊर्जा मिल रही थी।

लेकिन अब यह पेड़ से अलग हो गया है। अब बताओ, इसकी किस्मत अच्छी है या बुरी?”

व्यक्ति ने कहा, “अब तो इसकी किस्मत बुरी है। क्योंकि यह अपने पेड़ से अलग हो गया है और ज्यादा दिन जीवित भी नहीं रह पाएगा। धीरे-धीरे सूख जाएगा।”

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भिक्षु ने कहा, “अभी, यह सूखा नहीं है। अभी भी इसमें जीवन है और अब यह वह सब कर सकता है जो पेड़ पर रहकर नहीं कर पा रहा था।” भिक्षु ने वह पत्ता हवा में छोड़ दिया। वह उड़ कर दूर जा गिरा।

भिक्षु ने कहा, “देखो, पेड़ पर रहकर यह कभी इतनी दूर तक नहीं जा सकता था। आज इसने स्वतंत्र होकर उड़ने का आनंद लिया।” फिर वह पत्ता उड़कर नदी में जा गिरा।

भिक्षु ने कहा, “देखा तुमने, यह पत्ता अब नदी में तैरने का आनंद लेगा। और ध्यान से देखोगे तो यह पत्ता कितने ही छोटे छोटे जीवों को अपने ऊपर उठा कर नदी के एक किनारे से दूसरे किनारे तक पोंहचा देगा।

अब बताओ, पत्ते की किस्मत अच्छी है या बुरी?”

व्यक्ति ने कहा, “पत्ते की किस्मत तो अच्छी है, लेकिन मेरी किस्मत कब अच्छी होगी?”

भिक्षु ने कहा, “तुम नदी में उतर कर किस दिशा में आसानी से तैर सकते हो?”

व्यक्ति ने कहा, “जिस दिशा में नदी बह रही होगी, उस दिशा में मैं आसानी से तैर सकता हूं।”

भिक्षु ने कहा, “और अगर तुम्हें नदी की विपरीत दिशा में जाना हो तब तुम्हारी किस्मत अच्छी है या बुरी?”

व्यक्ति ने कहा, “तब तो किस्मत बुरी हुई ना, नदी की विपरीत दिशा में बहने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी।”

भिक्षु हँसे और बोले, “अगर मैं तुम्हारे हाथ पैर काट दूँ और तुमसे कहूं कि नदी की विपरीत दिशा में जाओ, तब तुम्हारी किस्मत अच्छी हुई या बुरी?”

व्यक्ति ने कहा, “तब तो मेरी किस्मत बुरी हुई।”

भिक्षु ने कहा, “और अगर मैं तुम्हारे हाथ पर तुम्हें वापस दे दूँ, तब तुम्हारी किस्मत अच्छी है या बुरी?”

व्यक्ति ने कहा, “तब तो मेरी किस्मत अच्छी है कि मेरे हाथ पैर मेरे पास है। उसकी मदद से मैं नदी की विपरीत दिशा में भी तैर पाऊंगा।”

भिक्षु ने कहा, “तो इस बात को समझो कि पहले भी तुम्हारी किस्मत सही थी। बस तुम समस्या का सामना करने से डर रहे थे। अगर नदी का बहाव तेज हो जाए तब नदी के विपरीत दिशा में तैरने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ेगी?”

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व्यक्ति ने कहा, “बहुत मेहनत करनी पड़ेगी।”

भिक्षु ने कहा, “अगर नदी का बहाव अत्यधिक तेज हो तब?”

व्यक्ति ने कहा, “तब और अधिक मेहनत करनी पड़ेगी।”

भिक्षु ने कहा, “और अगर नदी में अत्यधिक बाढ़ आ जाए जो सब कुछ बहा ले जाने के लिए तैयार हो तब?”

व्यक्ति ने कहा, “तब तो बहुत ही ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी।”

भिक्षु ने कहा, “नहीं, अगर तुम तब भी नदी की दूसरी दिशा में तैरने की कोशिश करोगे तो डूब जाओगे। जब जीवन में अत्यधिक कठिनाइयां हो, विपरीत परिस्थितियां हो, जो नदी की बाढ़ की तरह तुम्हें घेर लें और सब कुछ उड़ा ले जाने के लिए तैयार हो,

और परिस्थितियां तुम्हारे हाथ में ना हों, तब अपने लिए एक सुरक्षित स्थान खोजो। क्योंकि जिसकी तुम्हें रक्षा करनी है, वह केवल जीवन है। वह रहेगा तो बाढ़ भी शांत होगी और नदी का बहाव भी कम होगा।

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फिर तुम नदी की विपरीत दिशा में तैर सकोगे। अब बताओ, क्या तुम्हें अपनी किस्मत में कुछ अच्छा नजर आता है?”

व्यक्ति ने कहा, “आप ठीक कहते हैं, मेरी किस्मत अच्छी है क्योंकि मैं स्वस्थ हूं और जीवित हूँ। मेरे पास खाने के लिए भोजन भी है, पहनने के लिए कपड़े भी हैं, और कुछ धन भी है जो चला गया है।

मुझे उस पर शोक नहीं करना चाहिए जो मैं प्राप्त कर सकता हूं, उसके लिए प्रयत्न करना चाहिए। और पत्ते की तरह हवा में उड़ने और नदी में बहने का आनंद लेना चाहिए। मैं आपका आभारी हूं कि आपने मेरी फूटी किस्मत की मरम्मत की।”

3. जीवन आनंद है , पीड़ा नहीं – Best Gautam Buddha Stories In Hindi

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एक बार की बात है, बुध सभा में उपस्थित अपने शिष्यों को एक लकड़हारे की कहानी सुनाते हैं। एक दिन एक राजा जंगल में शिकार के लिए गया और रास्ता भटक गया। जंगल में भटकते भटकते उसे बहुत देर हो गई।

इसीलिए वह भूख और प्यास से व्याकुल होने लगा। तभी वह देखता है कि जंगल में एक लकड़हारा लकड़ियां काट रहा है। लकड़हारा बहुत से पेड़ काट चुका था और थोड़े से पेड़ अभी बाकी थे। उन्हीं में से एक पेड़ को वह नीचे गिरा रहा था।

राजा उस लकड़हारे के पास जाता है और कहता है, “मैं जंगल में शिकार के लिए आया था, कर रास्ता भटक गया। भटकते भटकते शाम हो आई है, मैं भूख और प्यास से तड़प रहा हूँ। क्या तुम मुझे खाने के लिए खाना और पीने के लिए पानी दे सकते हो?”

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लकड़हारे ने कहा, “हां महाराज, आइए बैठिए उधर दूर एक बावड़ी है, मैं वहां से पानी लेकर लाता हूं। तब तक मेरे पास यह रोटी है, आप इसे खा लीजिए।” उसने पोटली से निकाल कर एक मोटी सी रोटी राजा के सामने रख दी।

राजा ने उसको खाया, साथ ही लकड़हारे का लाया हुआ पानी भी पिया। जब राजा की भूख शांत हुई, तो राजा लकड़हारे से कहता हैं, “मैं रास्ता भटक गया हूँ, क्या तुम मुझे सही रास्ता बता सकते हो?”

राजा के आग्रह पर लकड़हारे ने राजा को सही रास्ता दिखाया। उसके बाद राजा लकड़हारे से कहता है कि, “मुश्किल समय में तुमने मेरी सहायता की, यदि तुमको कभी किसी भी सहायता की आवश्यकता पड़े तो मेरे पास आ जाना।

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मैं तुम्हारी सहायता जरूर करूंगा।” इतना कहकर राजा अपने राज्य की ओर चला गया। कुछ दिन बीत गए, धीरे-धीरे वन में सभी वृक्ष समाप्त हो गए क्योंकि लकड़हारा लकड़ी काटकर इनसे कोयला बनाकर बाजार में बेचा करता था।

इसीलिए वृक्षों के समाप्त हो जाने के कारण उसकी आय का यह साधन समाप्त हो गया। अब वह अपनी जीविका कैसे चलाएं, वह बहुत दुखी हो गया। अचानक उसे ख़याल आया कि राजा ने उससे उसकी मदद करने का वादा किया था।

इसलिए अब उसने राजा के पास जाने का निश्चय किया। बहुत ही दुखी मन से वह राजा के पास पहुंचा। राजा के सेवकों ने राजा को सूचना दी कि एक लकड़हारा आपसे मिलना चाहता है।

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राजा को स्मरण हो आया कि हां, उसने एक लकड़हारे को सहायता करने का वचन दिया था। उसने एक दिन मेरे प्राण बचाए थे।राजा सेवकों को कहता है कि, “लकड़हारे को तुरंत मेरे पास लाओ।” सेवक लकड़हारे को राजा के सामने ले आते हैं।

राजा लकड़हारे से पूछता है, “क्या बात है? तुम उदास और परेशान क्यों दिख रहे हो?” इस पर लकड़हारे ने उत्तर दिया, “महाराज, जिस वन से मैं लकड़ियां काटता था, वह समाप्त हो गया। अब मेरे पास जीविका का कोई साधन नहीं है।

इसीलिए आपकी शरण में आया हूँ। अगर आप मुझे एक वन दे दें तो मैं वहां से लकड़ियां काट कर उनका कोयला बना कर बेच पाऊंगा, जिससे कि मैं भूखा मरने से बच जाऊंगा।” राजा बोला, “तुम दुखी मत हो।

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मैंने तुम्हारी सहायता का वादा किया था। इसीलिए तुम्हारी समस्या का समाधान मैं अवश्य ही करूँगा।” इतना सुनकर लकड़हारा वापस चला जाता है।

लकड़हारे के चले जाने के पश्चात राजा अपने मंत्रियों को बुलाकर परामर्श करता है कि, “इस लकड़हारे को क्या दिया जाये?” परामर्श करने के पश्चात निर्णय हुआ कि, दक्षिण में राजा के चन्दन के वृक्षों का जो वन है, वह लकड़हारे को दे दिया जाए।

पदाधिकारियों को बुलाया गया। चन्दन के वृक्षों का वह वन लकड़हारे को दे दिया गया। और उसे सूचना दे दी गई कि, अब वह चन्दन के वृक्षों का वन उसका है तथा वही उसका मालिक है।

कई वर्ष बीत गए, एक दिन राजा अपने महल में बैठा था कि, उसे लकड़हारे का ध्यान आया। वह सोच रहा था कि, अब तो वह लकड़हारा बोहोत धनवान हो गया होगा, कई महल बना लिए होंगे, अपना जीवन ख़ुशी से जी रहा होगा।

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इसीलिए, एक बार चलकर उसे देखना चाहिए। राजा अपने मंत्रियों को साथ लेकर उस वन में गया जो उसने लकड़हारे को दिया था। किन्तु वहां पहुँच कर देखता है कि, वहां तो कोई वन नहीं था, ना ही वहां चन्दन का कोई वृक्ष दिखाई दे रहा था।

राजा ने घबरा कर अपने मंत्रियों से पूछा, “अरे, वह वन कहाँ है जो हमने लकड़हारे को दिया था? शायद वह वन किसी अन्य स्थान पर होगा और तुम मुझे किसी अन्य स्थान पर ले आए हो।”

राजा के इतना कहते ही मंत्रियों ने पदाधिकारियों की और देखा। पदाधिकारियों ने कागजों की ओर देखा तथा छानबीन करके बोले, “महाराज, वह वन तो इसी स्थान पर था। हम बिलकुल सही स्थान पर हैं।”

राजा ने कहा, “अगर हम सही स्थान पर हैं, तो फिर वह वन कहाँ गायब हो गया?” खोज बीन करने पर कुछ दूरी पर चन्दन के कुछ वृक्ष रखे हुए दिखाई दिए, उनके बीच में बैठा हुआ लकड़हारा भी दिखाई दिया।

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वह अभी भी बोहोत हताश, निराश, दुखी तथा विचारमग्न दिख रहा था। राजा उसके पास जाकर बोला, “अरे, तुम इतनी चिंता में क्यों हो,

लकड़हारा?” राजा को प्रणाम करते हुए बोला, “अन्नदाता, आपकी वजह से इतने वर्ष तो सुख में कट गए, अभी कुछ पेड़ रह गए हैं। थोड़े दिनों में यह भी समाप्त हो जायेंगे। सोचता हूँ, इसके पश्चात क्या करूँगा?”

राजा ने आश्चर्यपूर्वक कहा, “वृक्ष तो बोहोत थोड़े रह गए हैं। तुमने शेष वृक्षों का क्या किया?”

लकड़हारे ने कहा, “महाराज, मैं रोज लकड़ी काटता हूँ, कोयला बनाता हूँ, और बाजार में जाकर बेच देता हूँ।”

लकड़हारे की बात सुनकर राजा ने बोहोत ही दुखी मन से कहा, “अरे भाग्यहीन, यह तुमने क्या किया। तुम्हे पता है यह कौन सी लकडी थी? यह चन्दन की लकडी थी। तुमने इसे जलाकर कोयला क्यों बना दिया?”

लकड़हारा बोलता है, “महाराज, चन्दन की लकडी क्या होती है।”

इसपर राजा बोला, “अच्छा होता यदि तुम जानते कि चन्दन की लकडी क्या होती है। अब तुम एक काम करो, अभी जितनी लकडियां तुम्हारे पास बची हैं, उन लकडियों को बाजार लेकर जाओ, और हाँ, इनका कोयला मत बनाना, यह जैसी हैं, इन्हे वैसे ही लेकर जाओ, और वहां जाकर इनका मूल्य पता करो।”

लकड़हारे ने ऐसा ही किया, वह उन लकडियों को लेकर एक दुकानदार के पास गया। दूकानदार ने देखा कि लकड़ियां तो असली चन्दन की हैं, और शायद लकडहारे को इसका सही मूल्य भी नहीं पता है।

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यही सोचते हुए दुकानदार लकड़हारे से कहता है, “इन लकड़ियों का क्या मूल्य चाहिए तुझे?”

लकड़हारे ने पूछा, “तुम क्या दोगे?”

दूकानदार कहता है कि, “एक रुपया।”

यह सुनकर लकड़हारा बोहोत ही आश्चर्य से चिल्ला कर बोला, “क्या, एक रुपया? उसका तात्पर्य था कि इस छोटी सी लकडी का एक रुपया?”

दुकानदार को लगा कि लकड़हारा जानता है कि इन लकडियों का असल मूल्य क्या है। उसके बाद वह बोला, “ठीक है, मैं तुम्हे इसके दो रुपये दूंगा।”

लकड़हारा और भी ज्यादा आश्चर्य से चिल्ला कर बोला, “दो रुपये? इतनी सी लकडी के दो रुपये?”

इसपर दुकानदार थोड़ा सोच कर बोला, “अच्छा, ठीक है, मैं तुम्हे इसके चार रुपये दे सकता हूँ।”

लकड़हारा फिर आश्चर्य से चिल्लाया, “अच्छा, चार रूपए?” कुछ ही दूरी पर एक और दुकानदार उनकी बातें सुन रहा था। उसने देखा कि वह दुकानदार एक मूल्यवान वास्तु को कौड़ियों के भाव खरीद रहा है।

इसीलिए उसने उस लकड़हारे को आवाज लगाई और कहा, “इधर आओ, मैं तुम्हे इन चन्दन की लकड़ियों के दस रूपए दूंगा।” लकड़हारे ने जब सुना कि वह दुकानदार उन लकड़ियों को दस रूपए तक मैं खरीदने को तैयार है,

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तो वह अपना सर पकड़ कर बैठ गया। चिल्ला उठा, ढाता मारकर, रोने लगा। अब उसे आभास हो चूका था कि जिस लकडी को वह कोयला बना कर बेचता रहा, वह कितनी मूल्यवान थी, और कितनी बड़ी संपत्ति का उसने विनाश कर दिया।

कहानी यहीं समाप्त होती है। कहानी समाप्त करने के बाद बुद्ध अपने शिष्यों से कहते हैं, “सुनों, मेरे शिष्यों, हम स्वयं भी तो उस लकड़हारे की भांति हैं।

राजाओं के राजा, उस परमात्मा ने ना जाने किस बात से प्रसन्न होकर, सांसों का यह चन्दन से पूर्ण वन हमें दिया है। हमने कुत्सित वासना, घृणा, पाप की अग्नि से उसे जला कर भस्म कर दिया।

हमारी सांसें और हमारा यह जीवन कितना मूल्यवान है, यह हमने कभी समझा ही नहीं। सांसों का यह चन्दन वृक्षों से परिपूर्ण वन, जिसे हमने काम, क्रोध, लोभ, मोह, और अहंकार की आग में जला कर कोयला बना दिया है।

परन्तु जो होना था, वह हो गया। अब तो चन्दन के जो थोड़े से वृक्ष, अर्थात जीवन का जितना भी समय आपके पास बचा है, जितने भी वर्ष आपके पास बचे हैं, इन्ही का उचित उपयोग करें।

यत्न करें कि तुम्हारा लोक और परलोक सुधर जाये, और यदि तुम अपने शेष बचे वक़्त का सही उपयोग नहीं करते, तो आपका पूरा जीवन कोयले के सामान बनकर रह जायेगा, और अंत में सिर्फ पछतावा ही रह जायेगा।”

4. खुद को मजबूत कैसे बनाएं ? – Gautam Buddha Stories In Hindi For Mindset

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बुद्ध की शरण में जो भी नया भिक्षु आता, उसे कई नियमों का पालन करना पड़ता था। जैसे कि वे किसी के भी घर तीन दिन से ज्यादा नहीं रुक सकते थे, तथा और भी बहुत से नियम थे जिनका पालन भिक्षुओं को करना पड़ता था।

ये सभी नियम स्वयं बुद्ध ने बनाए थे। इन नियमों को बनाने का उद्देश्य यह था कि उनकी सेवा में लगे लोगों को किसी तरह की कोई तकलीफ न हो।

बुद्ध और उनके भिक्षु जब यात्राओं पर निकलते थे, तो वे रास्ते में आने वाले गरीब घरों में ही शरण ले लिया करते थे। वे इन घरों में अधिकतम तीन दिनों तक रुक सकते थे। तीन दिनों के बाद उन्हें अगली यात्रा पर निकल जाना पड़ता था।

एक दिन, वे ऐसे ही एक गांव में पहुंचे। बुद्ध और उनके शिष्य अपने रहने के लिए कोई निवास स्थान ढूंढ रहे थे। बुद्ध के शिष्य आनंद को एक वेश्या ने अपने घर रहने को आमंत्रित किया।

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वह बहुत ही जवान और खूबसूरत युवती थी। वेश्या के आमंत्रण पर आनंद ने उसे कहा कि वह उसके घर पर रह सकते हैं, पर इसके लिए उन्हें बुद्ध से अनुमति मांगनी होगी।

“क्या तुम्हें इसके लिए सचमुच अपने गुरू से इजाजत मांगनी होगी?” युवती ने पूछा।

“नहीं, मैं जानता हूँ कि बुद्ध मेरी बात मान जाएंगे और मुझे तुम्हारे घर ठहरने की अनुमति दे देंगे, पर उनसे पूछना एक रिवाज है।”

आनंद बुद्ध के पास पहुंचे और बोले, “हे बुद्ध, इस गांव में तीन दिनों के विश्राम के दौरान एक स्त्री मुझे अपने घर पर आमंत्रित कर रही है। लेकिन वह स्त्री एक वेश्या है।”

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बुद्ध ने आनंद की ओर मुस्कराकर देखते हुए कहा, “अगर वह तुम्हें इतने प्यार से आमंत्रित कर रही है, तो तुम्हें उसके निमंत्रण को ठुकराना नहीं चाहिए। जाओ और उसके घर ही रहो।” बुद्ध की यह बात दूसरे शिष्यों को गवारा न हुई।

उन्होंने बुद्ध से सवाल पूछा, “आप आनंद को एक वेश्या के घर ठहरने की अनुमति कैसे दे सकते हैं? यह भिक्षुओं के आचरण के खिलाफ है।”

बुद्ध ने जवाब दिया, “वत्स, तुम चिंता मत करो। तुम लोगों को तीन दिनों में अपने सवाल का जवाब मिल जाएगा।”

बुद्ध की यह बात सुनकर सभी शिष्य चुप हो गए। फिर आनंद अगले 3 दिनों के लिए उस वेश्या के घर रहने चले गए और बाकी के शिष्य आनंद की जासूसी में लग गए और सारी बातें बुद्ध को बताने लगे।

बुद्ध चेहरे पर मंद मंद मुस्कान लिए चुप बने रहे। पहले दिन वेश्या के घर से आनंद और महिला के गाने की आवाज़ आई। यह बहुत नई बात थी। एक भिक्षु का वेश्या के साथ यूं गाना गाना, दूसरे शिष्यों को गवारा नहीं हो रहा था।

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शिष्यों ने कहा, “बस, यह तो गया!”

पर दूसरे दिन, घर से गाने के साथ नाचने की आवाज़ें भी आने लगीं। अब सारे शिष्य एक स्वर में कहने लगे, “अब तो यह पक्का ही गया!”

तीसरे दिन तो सचमुच ही उन्होंने खिड़की से आनंद और उस महिला को नाचते-गाते देख लिया। सबका यह अनुमान था कि आनंद इतनी मौज में है, तो वह भिक्षुओं के साथ आगे की यात्रा पर नहीं आएगा।

अगले दिन सभी भिक्षुओं में कानाफूसियां होने लगीं तथा वे सभी अपनी आगे की यात्रा के लिए एक जगह एकत्रित हुए। सभी ने आनंद के आने की उम्मीद छोड़ दी थी।

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सभी भिक्षु सोच रहे थे कि भला वह इतनी सुंदर स्त्री का साथ छोड़ कर भिक्षुओं के साथ क्यों आएगा। परंतु तभी सबने देखा कि आनंद उस सुंदर स्त्री के साथ उनकी और ही आ रहे हैं।

वह सुंदर स्त्री एक महिला भिक्षुक का रूप धरे हुए थी। बुद्ध उसे देखकर मुस्करा रहे थे, जबकि बाकी विस्मित होकर खुले मुंह से आनंद और उस महिला भिक्षुक को ताक रहे थे।

बुद्ध ने आनंद की पीठ पर हाथ फेरते हुए अन्य भिक्षुओं को संबोधित करते हुए कहा, “अगर खुद पर भरोसा है, तो आपको कोई भ्रष्ट नहीं कर सकता।

बल्कि अगर आपका चरित्र बलवान है, तो आप भ्रष्ट को भी चरित्रवान बना सकते हैं।” ऐसा कहते हुए बुद्ध ने वेश्या से भिक्षुक बनी उस महिला का अपने संघ में स्वागत किया और सभी लोग आगे की यात्रा पर निकल पड़े।

5. सारा खेल मन का है, जानें कैसे ? – Gautam Buddha Stories In Hindi For Better Life

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बहुत समय पुरानी बात है। दो बौद्ध भिक्षु पास के ही एक गांव से भिक्षा लेकर वापस मठ की ओर लौट रहे थे। उनमें से एक भिक्षु बोहोत बूढ़े थे, जिन्हें काफी अरसा हो गया था संन्यास लिये हुए, और दूसरा एक युवा भिक्षु था।

उसने हाल ही में संन्यास लिया था। दोनों शांत भाव से अपने रास्ते पर चलते जा रहे थे। रास्ते में एक नदी पड़ती थी, जिसको पार करके ही कही जाया जा सकता था। बरसात के वह कारण, नदी अपने उफान पर थी।

जब वे दोनों नदी के तट पर पहुंचे, तो उन्हें वहां एक स्त्री दिखाई दी, जो नदी पार करने की कोशिश कर रही थी। वह इतनी सुन्दर थी, कि किसी अप्सरा से कम न प्रतीत होती थी। पानी से भीगे उसके वस्त्रों के नीचे से उसके सुकोमल अंग झांक रहे थे।

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स्वर्णाभूषण उसके रूप को अनुपम दिव्यता प्रदान कर रहे थे। जब भिक्षु उसके पास पहुंचे, तो उस स्त्री ने उनको प्रणाम किया और बताया कि वो यहां के राजा की कन्या है, जो शिकार खेलते हुए भटक गई है।

नदी के उस पार उसका नगर है। उसने विनती की, “कृपा करके मुझे इस नदी को पार करने में मेरी मदद करें। नदी का वेग इतना ज़्यादा है, कि मैं अपने शरीर को संभाल नहीं पा रही हूं।”

दोनों भिक्षुओं ने नदी की ओर देखा। किनारे के उबड़-खाबड़ पत्थर, तल की चिकनाहट और ऊपर से धारा का वेग। कुल मिलाकर उसे पार कर पाना किसी कोमल मनुष्य के लिए अत्यंत कठिन था।

परन्तु समस्या सिर्फ यही एक नहीं थी। समस्या एक और भी थी। भगवान् बुद्ध ने भिक्षुओं को नारी से दूर रहने को कहा था। इसीलिए वो उसको नदी पार नहीं करवा सकते थे।

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नारी स्पर्श से तो अब तक संचित समस्त साधना एक क्षण में नष्ट हो सकती थी। बूढ़ा भिक्षु अभी ये सब सोच विचार कर ही रहे थे कि युवा भिक्षु आगे बढ़ा। उसने उस स्त्री को अपने कंधे पर उठाया और नदी में उतर गया।

बूढ़ा भिक्षु ये सब देखकर हक्का-बक्का रह गया। वो भी उसे विस्मय से देखते हुए पीछे-पीछे नदी पार करने लगे। युवा भिक्षु दूसरे किनारे पर पहुंच गया। उन्होंने स्त्री को अपने कंधे से उतारा और उससे विदा ली।

वह स्त्री भी उनको प्रणाम करके वहां से चली गई। युवा भिक्षु शांत भाव से मठ की ओर बढ़ने लगा। पीछे-पीछे बूढ़े भिक्षु भी तट पर पोंहचे। पहुंचते ही उन्होंने युवा सन्यासी को उपेक्षा के भाव से देखा।

बूढ़े भिक्षु की आंखों में युवा भिक्षु के लिए क्रोध और दुर्भावना थी। उन्होंने युवा भिक्षु की तरफ मुंह फेरा और शीघ्रता से मठ की ओर पांव बढ़ाने लगे।

आवेग में चलते-चलते वह विचार कर रहे थे कि ‘देखो, एक हम हैं जिन्होंने इतने साल तक अपने ऊपर किसी स्त्री की परछाई तक नहीं पड़ने दी। और एक ये हैं आजकल के युवा सन्यासी।

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स्त्री की छाया तो दूर उसे स्पर्श भी किया और सिर्फ स्पर्श ही नहीं, उसे कंधे पर भी उठा लिया। अभी मठ में जाकर भगवान् बुद्ध से इसकी शिकायत करता हूं। ऐसे नीच को तो संघ से ही निकाल देना चाहिए।

और भगवान् बुद्ध से ये भी आग्रह करूंगा कि आगे से इन युवाओं को दीक्षा ही न दें। ये अपने ऊपर सयंम तो रख नहीं सकते’। फिर ज्ञान कैसे अर्जित करेंगे?

यही सब सोचते विचारते मठ आ गया। वह तेज़ी से अन्दर गए और भगवान् बुद्ध से भेंट करने उनके पास पोंहचे। बुद्ध शांत मुद्रा में एक वृक्ष के नीचे बैठे थे।

बूढ़े भिक्षु ने उन्हें प्रणाम किया और सारा किस्सा सुना दिया कि कैसे उस युवा भिक्षु ने उस स्त्री को अपने कन्धों पर उठाकर नदी पार करवाई। संघ के सभी भिक्षु इकठ्ठा हो गए।

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युवा भिक्षु को बुलाया गया। भगवान् बुद्ध ने उससे पूछा कि ‘ये वृद्ध आप पर जो आरोप लगा रहे हैं क्या वो सत्य है? क्या आपने किसी स्त्री को अपने कंधे पर उठाकर नदी पार करवाई?’

युवा भिक्षु ने कहा, ‘कौन स्त्री? अच्छा वो हां-हां मैंने उसे नदी पार करवाई थी, परन्तु भगवान्, मैंने तो उस स्त्री को नदी के उस पार से अपने कंधे पर उठाया और इस पार उतार दिया था।

पर ये वृद्ध भिक्षु तो अभी तक उसे अपने कंधे पर उठाए हैं।” ये बात सुनकर बुद्ध मुस्कुराए। उन्होंने युवा भिक्षु को आशीष दी और कहा कि सच में, किसी कार्य में शारीरिक संलग्नता से कहीं अधिक प्रभावी मानसिक लिप्तता है।

युवा भिक्षु ने परोपकार की भावना से उस स्त्री को उठाया। इसलिए उसका मन दूषित नहीं हुआ, जबकि बूढ़े भिक्षु का मन द्वेष भाव से भर गया और वे अब तक अशांत है।

6. बीते कल को भूलकर, आज में जीने की कला – Best Gautam Buddha Stories In Hindi

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एक बार की बात है, बुद्ध भगवान किसी गांव में उपदेश दे रहे थे। उन्होंने कहा कि हर किसी को धरती माता की तरह सहनशील तथा क्षमाशील होना चाहिए।

क्रोध ऐसी आग है जिसमें क्रोध करने वाला तो जलता ही है, तथा वह अपने साथ साथ दूसरों को भी जला देता है। सभा में सभी शांति से बुद्ध की वाणी सुन रहे थे, लेकिन वहां स्वाभाव से अति क्रोधित एक ऐसा व्यक्ति भी बैठा हुआ था,

जिसे बुद्ध की ये सारी बातें बेतुकी लग रही थी। वह कुछ देर तो यह सब सुनता रहा, फिर अचानक ही आग बबूला होकर बोलने लगा, “तुम पाखंडी हो, बड़ी बड़ी बातें करना यही तुम्हारा काम है।

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तुम लोगों को भ्रमित कर रहे हो, तुम्हारी ये बातें आज के समय में कोई मायने नहीं रखती।” ऐसे कटु वचनों को सुनकर भी बुद्ध शांत रहे। उसकी बातों से ना तो वे दुखी हुए और ना ही कोई प्रतिक्रिया की।

यह देख कर वह व्यक्ति और भी ज्यादा क्रोधित हो गया, और उसने क्रोध में बुद्ध के मुँह पर थूक दिया और वहां से चला गया। अगले दिन जब उस व्यक्ति का क्रोध शांत हुआ, तो उसे अपने उस बुरे व्यवहार के कारण पछतावे की आग में जलना पड़ा।

और वह बुद्ध से क्षमा मांगने के इरादे से उन्हें ढूंढते हुए उस स्थान पर पहुंचा जहाँ बुद्ध उपदेश दे रहे थे। पर बुद्ध वहां कहाँ मिलने वाले थे। बुद्ध तो अपने शिष्यों के साथ पास वाले एक अन्य गांव के लिए निकल चुके थे।

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व्यक्ति ने बुद्ध के बारे में लोगों से पूछा कि बुद्ध कहाँ गए हैं, और खुद ही उन्हें ढूंधता ढूंधता वहां पहुँच गया जहाँ बुद्ध प्रवचन दे रहे थे। उन्हें देखते ही वह उनके चरणों में गिर पड़ा और बोला, “मुझे क्षमा कर दीजिये, तथागत।

मैं अज्ञानी था, जो आपके साथ ऐसा बुरा व्यवहार किया। अपने उस व्यवहार के कारण मैं पछतावे की आग में जल रहा हूँ।” बुद्ध ने उस व्यक्ति से पूछा, “कौन हो तुम? तुम्हे क्या हुआ है?

क्यों क्षमा मांग रहे हो? उसने कहा, “क्या आप भूल गए? मैं वही हूँ जिसने कल आपके साथ बोहोत बुरा व्यवहार किया था। मैं बहुत शर्मिंदा हूँ।

मैं मेरे दुष्ट आचरण की क्षमायाचना करने आया हूँ।”

भगवान बुद्ध ने प्रेमपूर्वक कहा, “बीता हुआ कल तो मैं वंही छोड़ कर आ गया, और तुम अभी तक वंही अटके हुए हो। तुम्हे अपनी गलती का आभास हो गया।

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तुमने पश्चाताप कर लिया। अब तुम निर्मल हो चुके हो। अब तुम आज में प्रवेश करो। बुरी बातें तथा बुरी घटनाएं याद करते रहने से वर्तमान और भविष्य दोनों बिगड़ते जाते हैं। बीते हुए कल के कारण आज को मत बिगाड़ो।”

बुद्ध की बातें सुनकर उस व्यक्ति का सारा बोझ उतर गया। उसने भगवान बुद्ध के चरणों में गिरकर क्रोध त्याग का और क्षमाशीलता का संकल्प लिया। बुद्ध ने उसके मस्तिष्क पर आशीष का हाथ रखा।

उस दिन से उसमें परिवर्तन आ गया और उसके जीवन में सत्य प्रेम व करुणा की धारा बहने लगी।

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दोस्तों, अक्सर हम सभी अपनी बीती हुई जिंदगी को लेकर बोहोत परेशान रहते हैं। जबकि हम जानते हैं कि जो बीत गया हम उसे ना बदल सकते हैं, ना ही उसे सही कर सकते हैं।

असल में बात तो यह है कि हमारा आज ही हमारा बीता हुआ कल बनता है, और हमारे आज से ही हमारा आने वाला कल निर्धारित होता है। इसीलिए, बीते हुए कल पर कभी दुखी मत होना और आने वाले कल की चिंता मत करना।

बस आज में जियो जितना हो सके, आज में जियो। क्योंकि यदि आपने अपना वर्त्तमान ठीक से जी लिया तो बीता हुआ कल और आने वाला कल दोनों बेहतर होंगे।

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सब आपके हाथों में है, आप ही खुद को बनाते हैं, आप ही खुद को बिगाड़ते हैं। अंत में, बस इतना कहना चाहूंगी कि किताब के जितने पन्ने आपने पढ़ लिए हों, उन्हें बंद करते जाएँ, उनसे जितना सीख सकते हैं सीखें और आगे बढ़ें।

पास्ट में आपसे जो भी गलतियां हुई हैं, बस उनका पश्चाताप कीजिये और उन्हें ना दोहराने का संकल्प लीजिये, और आगे बढ़िये।

7. आप अपना जीवन स्वयं खराब करते है, जाने कैसे – Gautam Buddha Stories In Hindi

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एक समय की बात है, एक बौद्ध साधु एक गांव में रहते थे। उन्होंने बौद्ध ग्रन्थ हरिक सूत्र का गहन अध्ययन किया था। उन दिनों पुस्तकें दुर्लभ थीं और वह एकमात्र छपी हुई पुस्तक थी, हरिक सूत्र की।

उस मोटी सी प्रति को वो अपनी पीठ पर लाधे, इधर उधर घूमते रहते थे। वह सभी को बताना चाहते थे कि उन्होंने हरिक सूत्र का अध्ययन किया है और अब वह बोहोत बड़े ज्ञानी हैं।

वहां सभी जानते थे कि वे हरिक सूत्र के महान ज्ञाता हैं, न केवल ज्ञानी सन्यासी लाम्बा बल्कि सामान्य नागरिक भी उनसे हरिक सूत्र में वर्णित जटिल विषयों को सरल भाषा में समझने आते थे।

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वह हर एक सूत्र के हर एक अध्याय को बड़े से बड़े ज्ञानी व्यक्ति को भी बड़ी ही सरलता से समझा दिया करते थे। धीरे धीरे इसी बात का अहंकार उनमें पनपने लगा।

एक बार वह साधु किसी अन्य देश की यात्रा के लिए निकले, पर्वतीय मार्गों की राह में उन्हें एक बुढ़िया दिखाई दी जो चाय बिस्किट बेच रही थी। साधु को बोहोत भूख लगी थी, लेकिन उनके पास चाय बिस्किट खरीदने के पैसे नहीं थे।

उन्होंने बुढ़िया से कहा, “माताजी, मेरी पीठ पर ज्ञान का महान स्रोत हरिक सूत्र पुस्तक लदी है। यदि आप मुझे थोड़ी सी चाय और बिस्किट खाने को देंगी, तो मैं इस पुस्तक से ज्ञान कि कोई बात आपको बताऊंगा, जिससे आपका भला होगा।”

बुढ़िया माई को भी हरिक सूत्र के बारे में कुछ पता था। उसने साधु के सामने एक प्रस्ताव रखा और वह बोलीं, “आप बोहोत ही ज्ञानी हैं। अगर आप मेरे सरल से प्रश्न का उत्तर दे देंगे तो मैं आपको चाय बिस्किट दे दूंगी।”

साधु ने बुढ़िया की पेशकश स्वीकार की।

बुढ़िया ने साधु से पूछा, “आप जब बिस्किट खाते हैं, तो आप इन्हें अतीत के मन से खाते हैं या वर्तमान के मन से, या फिर आप इन्हें भविष्य के मन से खाते हैं?”

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साधु को इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं सूझा। वे अपनी पीठ पर लदी भारी भरकम पाटी उतार कर उसमें प्रश्न का उत्तर खोजने लगे। उन्हें प्रश्न का उत्तर खोजते खोजते बोहोत समय बीत गया।

इसी बीच शाम हो गई और बुढ़िया अपना सामान समेट कर चलने लगी। साधु अचानक घबराए, उन्होंने सोचा, “ऐसे कैसे हो गया कि मुझे इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिला?”

थक हार कर उन्होंने बुढ़िया से कहा, “आप मुझे इस प्रश्न का उत्तर दे दीजिये। मुझे इस प्रश्न का उत्तर इस पुस्तक में नहीं मिल रहा है। यह कैसे हो सकता है? मैं अज्ञानी जैसा महसूस कर रहा हूँ।”

बुढ़िया ने साधु को परेशान होता देख जाते समय कहा, “तुम बोहोत ही मूर्ख साधु हो। क्या तुम्हे इतना भी नहीं पता कि बिस्किट मुँह से खाये जाते हैं, ना कि अतीत, वर्त्तमान, और भविष्य से?” यह सुनकर साधु हतप्रत रह गए।

वह कुछ ना कह सके, उनकी समझ में आ गया था कि हम अपने ज्ञान से सरल जीवन को भी कठिन बना लेते हैं। जो बातें बोहोत ही सरल हैं, सीधी-साधी हैं, हम अपने ज्ञान के माध्यम से उनको कठिन बना लेते हैं।

इसी तरह हमारा सीधा-साधा जीवन भी मुश्किलों से भर जाता है।

दोस्तों, यदि किसी विषय पर हमें थोड़ा सा भी ज्ञान हो जाता है, तो हम अहंकार से भर जाते हैं। लेकिन एक बात बिलकुल सत्य है कि इस पूरे संसार में इतना ज्ञान है कि यदि आप पूरा जीवन भी ज्ञान अर्जित करते हैं, तो आपका जीवन छोटा पड़ जायेगा।

लेकिन ज्ञान कभी ख़त्म नहीं होता। और हम बेकार में ही इस बात का भ्रम पाल लेते हैं कि हम बोहोत ज्ञानी हैं। असल में, आप बोहोत बड़े ज्ञानी हो सकते हैं,

लेकिन आप पूर्णतय ज्ञानी नहीं हो सकते। इसीलिए, जितना भी ज्ञान आपके पास है, उसपर कभी घमंड ना करें। अहंकार में ना आएं। क्योंकि जीवन में कभी कभी ऐसा समय आता है जहाँ हमारी सूझबूझ काम करती है, ना कि हमारा ज्ञान।

कभी-कभी बोहोत बड़े ज्ञानी भी मूर्खतापूर्ण बातें करते हैं और अपने जीवन को और ज्यादा मुश्किल बना लेते हैं। अपने सीधे साधे जीवन को खराब कर लेते हैं। खुद को मुश्किल में डाल देते हैं। इसीलिए, जीवन में कभी घमंड ना करें।

इसी घमंड के कारण आप मूर्खतापूर्ण चीजें करने लगते हैं और खुद ही अपना जीवन खराब कर बैठते हैं। इसी विषय पर एक कहावत बोहोट प्रचलित है कि घमंड तो रावण का भी नहीं रहा, तो हम क्या चीज हैं?

इसीलिए, जीवन में ज्ञान अर्जित करें, यह बोहोत अच्छी बात है। लेकिन उसी ज्ञान पर कभी घमंड ना करें, क्योंकि एक दिन ऐसा जरूर आता है जब हर किसी का घमंड टूटता है।

अंतिम शब्द :-

Life Changing Gautam Buddha Stories In Hindi – दोस्तों, आज की इस ब्लॉग पोस्ट में मैंने आपके साथ गौतम बुद्ध की 7 ऐसी कहानियोंको साझा किया है, जिन्हें पढ़कर आप अपने जीवन को पहले से और बेहतर बना सकते हैं।

गौतम बुद्ध का जीवन और उनकी शिक्षाएं हमें दुःख से मुक्ति, आंतरिक शांति, और सच्चे सुख के मार्ग का प्रदर्शन करती हैं। देखा जाए, तो सभी लोग किसी ना किसी परेशानी से जूझ रहे हैं, अपने जीवन के दुखों में फंसकर एक बेहतर जीवन नहीं जी पा रहे हैं।

आज की इन कहानियों Best Gautam Buddha Stories In Hindi For Life पढ़कर आपको बोहोत कुछ सीखने को मिला होगा। गौतम बुद्ध की कहानियां हमें यह याद दिलाती हैं कि हम सभी में बदलाव की क्षमता है और हम सब अपने जीवन को सरल, संवेदनशीलता, और मानवता की दिशा में बदल सकते हैं।

दोस्तों आशा करती हूँ आज की यह पोस्ट आपको पसंद आई होगी गौतम बुद्ध कि इन मोटिवेशनल Best Gautam Buddha Stories In Hindi कहानियों को अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें।और अपनी और उनकी जिंदगी को बेहतर बनाएं।

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FAQ

गौतम बुद्ध का जन्म कहाँ हुआ था?

गौतम बुद्ध का जन्म लुम्बिनी, नेपाल में हुआ था, जो अब दशरथनगर के नाम से जाना जाता है।

बुद्ध के जीवन की पहली महत्वपूर्ण घटना क्या थी?

बुद्ध की जीवन की पहली महत्वपूर्ण घटना उनकी महापरिनिवाण थी, जो उनकी निर्वाण की स्थिति में जाने का समय है।

बुद्ध के उपदेशों का सार क्या है?

बुद्ध के उपदेशों का सार है “चारीत्रिक आत्म-परिवर्तन” और “दुःख से मुक्ति” की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन।

बुद्ध की प्रमुख शिक्षाएं कौन-कौन सी हैं?

बुद्ध की प्रमुख शिक्षाएं मध्यमार्ग, आस्था, कर्मपथ, और संयमपथ पर आधारित हैं।

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