10+ Best Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi | गौतम बुद्ध की कहानियां

Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi

10+ Best Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi | गौतम बुद्ध की कहानियां

10+ Best Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi | गौतम बुद्ध की कहानियां – दोस्तों आज की इस ब्लॉग पोस्ट में मैं आपको गौतम बुद्ध की ऐसी 10 कहानियों (Best Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi) से अवगत कराऊंगी जिन कहानियों में शायद आपको आपकी कई समस्याओं का हल मिल जाए।

गौतम बुद्ध की प्रेरणास्पद कहानियाँ ( Top10 Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi) जीवन के महत्वपूर्ण सवालों के उत्तर खोजने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती हैं, इन कहानियों से आप यह भी जानेंगे कि कैसे एक व्यक्ति अपने जीवन को शांति, समृद्धि, और आत्मिक समृप्ति के माध्यम से सफलता की ओर अग्रसर हो सकता है।

Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi For Success आपको जीवन के बारे में बोहोत कुछ सिखा सकती है आज के इस blog post पर अंत तक बने रहें मुझे यकीन है आप यहाँ से बोहोत कुछ सीख कर जायेंगे।

Table of Contents

गौतम बुद्ध का जीवन परिचय (Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi For Life)

गौतम बुद्ध, जिन्हें भगवान बुद्ध, महात्मा बुद्ध, सिद्धार्थ व शाक्यमुनि नाम से भी जाना जाता है। दुनिया के एक महान धार्मिक और दार्शनिक गुरु थे। गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी नामक स्थान पर लगभग 563 ईसा पूर्व में हुआ था

और उनकी मृत्यु – 483 ईसा पूर्व में हुई, गौतम बुद्ध एक आध्यात्मिक शिक्षक थे जो ईसा पूर्व छठी और पाँचवी शताब्दी के बीच भारत में रहे थे। उनके पिता का नाम शुद्धोधन था और माता का नाम माया था।गौतम बुद्ध का बचपन बहुत ही आम था। बुद्ध का जन्म एक धनी परिवार में हुआ था,

वे राजकुमार के रूप में पले थे और उन्हें सभी प्रकार की सुख-समृद्धि मिलती थी। हालांकि, उन्होंने जीवन के अस्थायीता की समझ पाई और एक दिन उन्होंने पूरे संसार की दुखभरी स्थिति का आभास किया। एक दिन वे अपनी सारी धन संपत्ति और स्थिति का त्यागकर

संसार को जन्म-मरण और दुखों से मुक्ति दिलाने के सत्य मार्ग एवं दिव्य ज्ञान की खोज में वन की ओर निकल गए जहां जाकर वह एक पेड़ के नीचे बैठ गए और अत्यधिक तपस्या और ध्यान की प्रक्रिया में समय व्यतीत करने लगे गौतम बुद्ध ने प्रण किया कि जब तक उन्हें दुख के रहस्य का उत्तर नहीं मिल जाता,

तब तक वह हार नहीं मानेंगे। उन्होंने अनेक साधना और ध्यान की प्रक्रियाओं का अभ्यास किया ताकि वे आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति कर सकें। वर्षों के कठोर ध्यान और अध्ययन के बाद, आखिरकार उन्होंने ज्ञान प्राप्त कर ही लिया, और वे सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध बन गए।

बुद्ध के जीवन के आखरी दिनों में, उन्होंने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया, जिसका मतलब है उनकी आत्मा की अनंत शांति की प्राप्ति। उनका यह जीवन संयम, उपकार, शांति, और आध्यात्मिकता की शिक्षा से भरा था।

1. चुप रहने के फायदे – Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi For Silence

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बात बहुत समय पहले की बात हैं एक बार गौतम बुद्ध के पास एक व्यक्ति आया जो एक क्षत्रिय था। वह बहुत ही विद्वान व्यक्ति था। वह इतना बड़ा विद्वान था कि उस व्यक्ति के ज्ञान के सामने बड़े-बड़े विद्वान भी हार मान लिया करते थे।

जहां भी ज्ञान की बातें होती वह वहां पहुँचकर अपने ज्ञान से सभी को प्रभावित कर देता था। उस व्यक्ति को अपने ज्ञान पर बहुत घमंड होने लगा था। वह खुद को बहुत बड़ा विद्वान समझने लगा था।

उस व्यक्ति को लगता था कि वह दुनिया में सबसे श्रेष्ठ ज्ञानी है। एक दिन जब उस व्यक्ति को गौतम बुद्ध के बारे में पता चला कि वह बहुत ही विद्वान और ज्ञानी हैं तब उसे अपने ज्ञान को और श्रेष्ठ दिखाने का मौका मिल गया। उसने सोचा वह गौतम बुद्ध के पास जाकर उनको अपने ज्ञान से झूठा साबित करेगा।

और यह साबित करेगा कि उससे बड़ा ज्ञानी कोई नहीं है। ऐसा सोचकर वह बुद्ध से मिलने के लिए निकल पड़ा लेकिन जब वह गौतम बुद्ध से मिलने जा रहा था तभी रास्ते में उसे पता चला कि गौतम बुद्ध बहुत ज्ञानी हैं, लेकिन वह ईश्वर के बारे में कभी बात नहीं करते हैं।

इसलिए उसने विचार किया अब तो वह बुद्ध से ईश्वर के बारे में ही पूछेगा। ऐसी मंशा लिए वह बुद्ध के आश्रम में पहुंचा और उनके समीप गया और बुद्ध से कहा, है बुद्ध मैं एक क्षत्रिय हूँ और बहुत बड़ा विद्वान भी हूँ। मैं आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ जिसका उत्तर आज तक कोई नहीं दे पाया है।

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मैंने सुना है आप बहुत बड़े ज्ञानी हैं आपको ज्ञान की प्राप्ति हुई है। क्या आप मेरे इस प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं? मैं आपसे जानना चाहता हूँ कि ईश्वर है या नहीं। गौतम बुद्ध उस क्षत्रिय कि बात को सुनकर जरा सा मुस्कराए और बोले, क्या तुम सच में ईश्वर के बारे में जानना चाहते हो या फिर मेरे सामने अपने ज्ञान का प्रदर्शन करने आए हो।

वह क्षत्रिय बोला, हे बुद्ध मैं तो बस अपने प्रश्न का उत्तर चाहता हूँ क्या आप मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं देंगे। गौतम बुद्ध बोले, मैं तुम्हारे सारे प्रश्नों का उत्तर देने के लिए तैयार हूँ लेकिन क्या मैं तुम्हारे प्रश्नों के जवाब के लिए कुछ शर्तें लगा सकता हूँ क्योंकि जैसा प्रश्न तुमने किया है ऐसे प्रश्नों का उत्तर सरलता से नहीं दिया जा सकता।

उस व्यक्ति ने सोचा, बुद्ध ज्यादा से ज्यादा मुझसे क्या मांग सकते है। यही हमारा धन, संपत्ति या फिर मेरी जान। मैं यह सब देने के लिए तैयार हूँ। कुछ देर सोच विचार कर व्यक्ति ने गौतम बुद्ध से कहा, ठीक है बुद्ध आप जो बोलेंगे मैं करने के लिए तैयार हूँ। मैं अपनी पूरी संपत्ति देने को तैयार हूँ और मैं अपनी जान भी देने को तैयार हूँ।

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गौतम बुद्ध फिर मुस्कराए और बोले, मुझे यह सब नहीं चाहिए। व्यक्ति ने कहा, फिर आप क्या चाहते हैं मैं आपको क्या दूं? बुद्ध बोले, मैं चाहता हूँ कि तुम दो सालों तक मेरे पास रहकर मौन धारण करो अगर तुम मेरी इस शर्त को मानकर दो सालों तक मौन धारण कर लेते हो तो मैं तुम्हारे सभी प्रश्नों का उत्तर दे दूंगा। व्यक्ति सोच में पड़ गया, बुद्ध ने मुझसे यह क्या मांग लिया।

यदि मैं मौन हो गया तो दो वर्षों तक मैं किसी को अपना ज्ञान प्रदर्शित कर ही नहीं पाऊंगा इससे तो मेरा सारा ज्ञान नष्ट हो जाएगा।
लेकिन वह कर भी क्या सकता था उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा था। वह बुद्ध से कह चुका था कि वह अपने प्रश्न का उत्तर जानने के लिए सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार है।

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इसलिए वह अब पीछे भी नहीं हट सकता था। उसने बुद्ध से कहा, मैं तैयार हूं। बुद्ध बोले, चलो आज तुम आराम करो कल से मौन शुरू करना। वह व्यक्ति पूरी रात बेचैन रहा। उसे नींद नहीं आ रही थी वह अब सोच रहा था कि मैं कहां फंस गया अच्छा खासा अपने रास्ते से जा रहा था यहां आकर तो मैं बेकार ही फंस गया।

क्षत्रिय व्यक्ति अगले दिन बुद्ध के पास गया और उसने मौन शुरू कर दिया। उसने एक दिन तो जैसे-तैसे करके निकाल दिया लेकिन दूसरे दिन वह बहुत बेचैन हो गया। अब तो उसके लिए एक-एक पल काटना भी भारी पड़ रहा था। लेकिन जैसे-तैसे करते चार महीने गुजर गए।

वह बुद्ध के शिष्यों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का जवाब देने के लिए हमेशा व्याकुल ही रहता था। लेकिन इन चार महीनों में उसमें बहुत बदलाव आ गया था। वह विरोध करने लगा था वह हमेशा गुस्से में लाल रहता। लेकिन मौन रहने के कारण वह कुछ कह नहीं पाता।

वह हताश और निराश होकर बस बैठा रहता या फिर इधर-उधर देखता रहता। एक दिन वह एक बड़ा सा पत्थर अपने हाथ में लेकर बुद्ध के पास गया और उस पत्थर को वहीं पटक कर भाग आया। गौतम बुद्ध को उस व्यक्ति की यह हरकत समझ नहीं आई वह उस व्यक्ति के पास गए और उसे एक तालाब के पास ले गए।

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बुद्ध बोले, मैं तुम्हें थोड़ी देर के लिए मौन तोड़ने की इजाजत देता हूं। तुम जो चाहे मुझसे पूछ सकते हो। बुद्ध कि बात को सुनकर व्यक्ति ने ना मैं अपना सिर हिला दिया, फिर बुद्ध ने कहा, तुम दृढ़ संकल्पी हो। इस तालाब को देखो क्या तुम्हें चंद्रमा दिखाई दे रहा है व्यक्ति ने हां में अपना सिर हिला दिया।

फिर बुद्ध ने कहा, अब तुम इस तालाब में एक पत्थर फेंको। व्यक्ति ने एक पत्थर लेकर उस तालाब में फेंक दिया। बुद्ध ने कहा, क्या अब भी चंद्रमा तुम्हें पहले की तरह स्पष्ट दिखाई दे रहा है। व्यक्ति ने ना में अपना सिर हिला दिया।

बुद्ध ने कहा, जैसे शांत पानी में चंद्रमा अपने स्पष्ट रूप में दिखाई देता है। उसी तरह एक मौन धारण किए व्यक्ति को अपना सब कुछ स्पष्ट दिखाई देता है। लेकिन तुमने जो मौन धारण किया है वह ऊपरी है। तुम्हारे अंदर अब भी बहुत शोर है। तुम मन ही मन न जाने किस-किस से बात करते हो।

जिस प्रकार शांत पानी में पत्थर फेंकने से उसमें हलचल हो जाती है और चंद्रमा का स्पष्ट रूप नहीं दिखाई देता है। उसी तरह तुम्हारे अंदर जितनी भी हलचल होगी तुम उतना ही सत्य से दूर रहोगे। बुद्ध आगे बोले तुमने चार महीने मौन धारण करके जो ऊर्जा एकत्रित की है उसे क्रोध में बर्बाद मत करो उसे अपने शरीर में समाहित कर लो।

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और खुद को शांत पानी के समान कर लो ताकि खुद की परछाई को देख पाओ। यह सुनकर वह व्यक्ति बुद्ध के चरणों में गिर गया और उसके बाद उसने दो सालों तक आंतरिक रूप से मौन धारण किया और खुद को शांत बनाया।

दो साल बीत जाने के बाद बुद्ध ने उस व्यक्ति से कहा, अब तुम्हें जो भी पूछना है तुम पूछ सकते हो। उस व्यक्ति ने दो साल बाद पहली बार कोई शब्द बोला था। उसकी वाणी में इतना आकर्षण था, इतनी करुणा थी कि हर कोई उसे सुनना चाहता था।

व्यक्ति बोला, हे बुद्ध जब मैंने आपसे प्रश्न किया था तब मैं खुद को एक श्रेष्ठ ज्ञानी समझता था। लेकिन अब मुझे पता चल गया है कि मैं अज्ञानी था। मेरे अंदर कोई भी ज्ञान नहीं था। दो साल पहले मेरे अंदर जो भी प्रश्न उठते थे।

अब वह सभी प्रश्न मौन धारण करने से नष्ट हो गए हैं। अब मेरा मन बिल्कुल खाली हो गया है। अब मेरे पास आपसे पूछने के लिए कोई भी प्रश्न नहीं है। वह व्यक्ति गौतम बुद्ध से आज्ञा लेकर अपने नगर की तरफ चला जाता है।

2. दुखी और अशांत मन से छुटकारा कैसे पाएं ? – Best Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi

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बहुत समय पहले कि बात है, गौतम बुद्ध अपने कुछ शिष्यों के साथ एक नदी के किनारे से गुजर रहे थे। शाम का समय था, डूबता हुआ सूरज अपनी लालिमा से वातावरण को आकर्षक बना रहा था। तभी गौतम बुद्ध ने देखा कि छोटे-छोटे कुछ बच्चे नदी के किनारे पड़ी गीली मिट्टी से छोटे-छोटे घर बना कर खेल रहे थे।

उन छोटे-छोटे घरों को बनाते हुए वे बच्चे इतने प्रसन्न दिख रहे थे कि जैसे उन्हें सब कुछ मिल गया हो। अब उन्हें और किसी चीज की आवश्यकता ही नहीं थी, वे अपने घर बनाने के काम में पूरी तरह से तल्लीन थे। उसमें खोए हुए थे, यह दृश्य देखकर महात्मा बुद्ध और उनके शिष्य बच्चों के इस खेल को वही खड़े होकर देखने लगे।

तभी थोड़ी देर बाद अचानक एक बच्चे का पैर दूसरे बच्चे के बनाये हुए घर से टकरा गया और उसके मिटटी के घर का आकार बिगड़ गया। इस पर वह दूसरा बच्चा चिल्लाया, “तुमने यह क्या कर दिया! तुमने मेरा मिटटी का घर तोड़ दिया। तुम्हे पता है, मैंने इसे कितनी मेहनत से बनाया था।

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आज के बाद तुम मेरे मित्र नहीं हो, तुम्हारी और मेरी मित्रता खत्म!” इसपर वह दूसरा बच्चा अपना घर बनाने में लग जाता है। थोड़ी देर बाद उन बच्चों की माताएं वहां आ जाती हैं, जो कि वहीँ नदी किनारे कपड़े धो रहीं थीं। आकर कहती हैं, “चलो बच्चों, शाम का समय हो आया है, इसीलिए अब घर चलो।”

इतना सुनते ही वे सारे बच्चे अपने खुद के बनाये हुए उन मिट्टी के घरों के ऊपर से कूद-कूद कर उन्हें तोड़ने लगे। वे सभी खुशी से चिल्ला रहे थे और मिट्टी के घरों पर कूद रहे थे। ये वही बच्चे थे जो थोड़ी देर पहले तक मेरा घर तेरा घर कर रहे थे और आपस में लड़ रहे थे।

अब उन बच्चों में से किसी को भी इस बात की सुध नहीं थी कि कौन किसका घर तोड़ रहा है या किसने किसका घर तोड़ा था। थोड़ी देर उछल-कूद करने के बाद वे बच्चे एक दूसरे के कन्धों पर हाथ रखे मस्ती मजाक करते हुए वहां से चले गए। जब तब उन बच्चों ने ये माना हुआ था कि ये मिटटी के घर उनके हैं, तब तक उनके बीच लड़ाइयां भी हो रही थीं, उनकी मित्रता भी टूट रही थी।

लेकिन जैसे ही बच्चों को पता चला कि अब रात होने वाली है और अब उनके असली घर जाने का समय आ चुका है, तो बच्चों का मिटटी के घर के प्रति सारा मोह समाप्त हो गया और उन्होंने खुद ही कूद-कूद कर उन घरों को तोड डाला और खेलते कूदते अपने-अपने घर चले गए।

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इस घटना को महात्मा बुद्ध और उनके शिष्य पूरे ध्यान से देख रहे थे, लेकिन जाते हुए बच्चों को देखकर बुद्ध मुस्कुराने लगे। तो शिष्यों ने बुद्ध के मुस्कुराने का कारण पूछा। तब बुद्ध कहने लगे, “शिष्यों, ऐसा ही हमारे जीवन के साथ भी होता है। जिस इंसान को यह स्पष्ट रूप से दिखाई दे गया कि यहाँ मरना है, रात होनी ही है, आज नहीं तो कल अपने असली घर वापस जाना ही पड़ेगा।

उस इंसान का इस संसार के प्रति सारा मोह, सारा रस समाप्त हो जाता है। जैसे जब उन बच्चों को यह महसूस हो गया कि यह तो उनकी ही बनाई हुई दुनिया थी, जिसमें वे कुछ देर के लिए खो गए थे, उनका असली घर तो कहीं और है। तो उन्होंने खुद ही अपने उन मिटटी के घरों को तोड़ दिया और उनसे मुक्त हो गए।

बुद्ध ने आगे कहा कि लोग मुझसे अक्सर पूछते हैं कि हमें इस संसार से मुक्ति कैसे मिलेगी, जबकि सत्य तो यह है कि तुम्हे मुक्त होने की जरुरत ही नहीं है। तुम तो पहले से ही मुक्त हो, ये तो बस तुमने मान लिया है कि तुम दुनिया से जुड़े बैठे हो। ये तो बस एक सपना है, जिसे तुम सच मानकर जिए चले जा रहे हो,

लेकिन ये सपना भी एक दिन टूट ही जायेगा, क्योंकि सभी सपने अंततः टूट ही जाते हैं। ये भी टूटेगा जब तक उन बच्चों ने उन मिटटी के घरों से खुद को जोड़ रखा था, उन्हें अपना माना हुआ था, तब तक उनके अंदर ये भय भी बैठा हुआ था कि कहीं ये टूट ना जाये, कहीं कोई इनको नुकसान ना पोंहचा दे।

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लेकिन जैसे ही शाम होने को आती है, उन बच्चों का उनके असली घर जाने का समय आता है, उनका उन मिटटी के घरों के प्रति सारा भय, सारा प्रेम समाप्त हो जाता है। ये जीवन भी ऐसा ही है, वो सारी चीजें जिनके लिए तुम हमेशा डरे हुए रहते हो, चिंतित रहते हो, जिनसे तुम जुड़ाव महसूस करते हो, वो सब कुछ बस एक सपना है, जिसमें तुम जिए चले जा रहे हो,

और ये सपना किसी भी क्षण टूट सकता है। जिन चीजों और लोगों को तुम अपना मान बैठे हो, वो तुम्हारे हैं ही नहीं ना कभी थे, यह तो बस तुम्हारा भ्रम है, और दुनिया में लाखों लोगों का यह भ्रम हर रोज़ टूटता है। तुम्हारा भी टूटेगा। बुद्ध आगे थोड़ा गंभीर होकर कहते हैं, “यह दुनिया एक सपना तो है ही, लेकिन साथ ही साथ यह सत्य को जानने का एक अवसर भी है।

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अब यह आपके ऊपर है कि इस हाथ आये अवसर को आप चिंता या तनाव में बिताते हैं या फिर एक सार्थक खोज में, क्योंकि एक बात तो नियश्चित है कि हम सभी हर पल बीतने के साथ ही अपनी मौत के और करीब पहुँचते जा रहे हैं, और एक न एक दिन हम सबको उसका सामना करना ही पड़ेगा।

अगर आप लोग इस दुनिया को इस नजरिये से देख पाएं, तो दुनिया की कोई भी परेशानी, कोई सा भी दुख आपको अशांत या परेशान नहीं कर पायेगा। आपके मन के अशांत होने का केवल एक ही कारण है – प्रिय शिष्यों, ख़ुशी उसमें नहीं जो हमें मिलेगा, बल्कि उसमें है जो अभी हमारे पास है। ख़ुशी कुछ करने या न करने से नहीं मिलती, बल्कि ख़ुश रहना तो हमारा स्वाभाव है।

3. समय रहते ये समझे तो ठीक वरना – Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi for Life

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एक बार महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के साथ मगध राज्य में आये हुए थे। वहां एक चन्दौसा नाम का मोची गांव के बाहर अपनी कुटिया बनाकर रहता था। उसके परिवार में उसकी पत्नी और चार बच्चे उसके साथ रहा करते थे। चन्दौसा की कुटिया के बाहर एक बहुत बड़ा सा तालाब था, जिसमें बरसात का पानी जमा हो जाया करता था।

एक दिन जब चन्दौसा सवेरे उठकर तालाब पर गया, तो उसे एक कमल का पुष्प दिखाई दिया जो देखने में बहुत दिव्य था। चन्दौसा दौड़ कर अपनी कुटिया में गया और अपनी पत्नी फुलौरी को उस पुष्प के बारे में बताया। चन्दौसा की पत्नी फुलौरी बड़े ही शांत स्वाभाव की थी और साथ ही पतिव्रता भी थी।

फुलौरी ने चन्दौसा को तत्काल बताया कि महात्मा बुद्ध यहाँ हमारे राज्य में आये हुए हैं, शायद वह इस तालाब के पास से गुजरे होंगे, जिसके कारण यह फूल हुआ है। फुलौरी कि यह बात सुनकर चन्दौसा के मन में अमीर बनने का स्वप्न जाग्रत हुआ। वह झटपट तालाब में कूद पड़ा और उस पुष्प को तोड़कर ले आया और अपनी पत्नी फुलौरी से आगे कि रणनीति बताई।

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वह बोला, “मैं यह पुष्प राजा को देकर उसके बदले ढेर सारा मूल्य प्राप्त करूँगा और हम लोग अपना जीवन आराम से व्यतीत करेंगे।” फुलौरी कहती है, “यह तो बहुत अच्छी बात है, यह पुष्प भला हमारे किस काम का। यह राजा को ही दे आइए, इसपर चन्दौसा कहता है, “ठीक है, मैं शीघ्र ही लौट कर आता हूँ,” कहते हुए वह राजमहल की और तेज क़दमों से निकल पड़ा।

रास्ते में चन्दौसा को तेज क़दमों से जाते हुए एक बड़े व्यापारी ने देख लिया, उसके हाथों में वह दिव्य पुष्प देख कर व्यापारी के मन में उस पुष्प को प्राप्त करने कि अभिलाषा जाग्रत हो गई। व्यापारी आवाज देकर चन्दौसा को बुलाता है और उस पुष्प का मूल्य पूछता है।

व्यापारी उस पुष्प के बदले दो सोने के सिक्के देने को तैयार हो जाता है, किन्तु अंत में चन्दौसा यह सोचता है कि जब यह व्यापारी इस पुष्प का मूल्य दो सोने के सिक्के देने को तैयार है, तो राजा अवश्य ही इस पुष्प का इससे अधिक मूल्य देंगे। चन्दौसा व्यापारी को ना करते हुए राजमहल की और दौड़ता हुआ निकल गया राह में राजा रत्नेश आते हुए दिखाई दिए।

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चन्दौसा ने उस पुष्प को राजा को दिखाया, तो राजा को वह पुष्प बड़ा दिव्य मालूम पड़ा, और राजा उस पुष्प के बदले पांच सोने के सिक्के देने को शीघ्र तैयार हो गए। चन्दौसा सोच में पड़ गया कि इस पुष्प में ऐसी क्या ख़ास बात है जो व्यापारी और राजा इसकी प्राप्ति करना चाहते हैं और मेरे पास यह पुष्प है जिसका मैं प्रयोग या मूल्य नहीं जानता।

यह पुष्प कितना मूल्यवान है इसकी समझ मुझे नहीं है। एकाएक चन्दौसा के दिमाग में बिजली सी कौंध जाती है। वह राजा और व्यापारी दोनों को उस पुष्प को देने के लिए मना कर देता है और महात्मा बुद्ध की शरण में पोहोंच जाता है। महात्मा बुद्ध के चरणों में गिरकर वह पुष्प उन्हें समर्पित कर देता है और उनकी शरण में सरक्षण मांगता है।

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महात्मा बुद्ध चन्दौसा को उठा कर ह्रदय से लगा लेते हैं और उसे अपनी शरण में ले लेते हैं। चन्दौसा को ज्ञान प्राप्त होता है। फिर वह अपने समाज में ज्ञान के माध्यम से समाज की पीड़ा हरने का प्रयत्न करता है और आजीवन महात्मा बुद्ध का शिष्य बन जाता है।

दोस्तों, हमारी जिंदगी में भी ऐसी बहुत सी चीजें होती हैं जिनका हम कभी मूल्य नहीं समझ पाते और जाने-अनजाने उन्हें खो देते हैं। और जब हमें एहसास होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

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इसीलिए जिस तरह इस कहानी में उस व्यक्ति को उस पुष्प का मूल्य पता चला और उसने उसे बेचने का इरादा बदल दिया, उसी तरह आप भी उन सभी चीजों का मूल्य समझें जो आपको प्राप्त हैं, क्योंकि देने वाला जिन हाथों से आपको देता है, वह उन्ही हाथों से सब कुछ ले भी सकता है।

इसीलिए जीवन में हर किसी चीज का मूल्य समझें, हर किसी चीज की एहमियत को समझें।

4. गुरु की सीख – Life Changing Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi

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एक बहुत ऊंची पहाड़ी स्थान पर एक गुरु का आश्रम था। उनकी ख्याति विश्वभर में थी। वह बहुत ही विद्वान थे, लेकिन उनका कोई शिष्य नहीं था क्योंकि जब भी कोई उनका शिष्य बनने के लिए आता, वह उसकी कठिन परीक्षा ले लेते और परीक्षा इतनी कठिन होती कि आज तक कोई भी उनकी परीक्षा में सफल नहीं हो पाया था।

ऐसे ही एक बार एक युवा उस गुरु के पास उनकी महिमा सुनकर आया। गुरु का शिष्य बनने की चाहता मन में लिए वह गुरु के पास पहुंचा और वहां पहुंचकर उसने गुरु से कहा, “हे गुरुदेव, मैं बहुत दूर से आपका शिष्य बनने की चाह में आया हूं। कृपया कर आप मुझे अपना शिष्य स्वीकार करें।”

गुरु ने कहा, “तुम मेरा शिष्य क्यों बनना चाहते हो?” शिष्य ने कहा, “गुरुदेव, मैं आपकी सेवा करना चाहता हूं, आपकी शिक्षाओं को अपने भीतर उतारना चाहता हूं।” गुरु ने कहा, “मैं अपनी सेवा स्वयं कर सकता हूं, मुझे तुम्हारी आवश्यकता नहीं है।” शिष्य गुरु के चरणों में गिर गया और बोला, “हे गुरुदेव, मुझे अपना शिष्य बना ले, मैं आपसे ही ज्ञान प्राप्त करना चाहता हूं।”

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गुरु ने कहा, “ठीक है, लेकिन मैं बस अज्ञानियों को ही अपना शिष्य बना सकता हूं, क्या तुम अज्ञानी हो?” शिष्य ने थोड़ा सोचा और बोला, “जी गुरुदेव, मैं पूर्ण अज्ञानी हूं।” गुरु के चेहरे पर एक मंद मुस्कान आ गई और वह बोले, “क्या किसी अज्ञानी को यह पता हो सकता है कि वह अज्ञानी है और जिसे पता है कि वह अज्ञानी है, क्या वह वास्तव में अज्ञानी हो सकता है?

क्योंकि यहां तो सभी अपना ज्ञान बिखेरते रहते हैं, अपने ज्ञान का ढिंढोरा पीटते रहते हैं।” युवा बिना कुछ कहे चुपचाप खड़ा गुरु की बातें सुन रहा था। गुरु ने कहा, “ठीक है, अगर तुम मेरी परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाते हो तो मैं तुम्हें अपना शिष्य अवश्य बना लूंगा। आज से तुम मेरे साथ यहीं आश्रम में रहोगे।

मैं जो कुछ भी करूं, उसे ध्यान से देखना और समझना लेकिन कोई प्रश्न मत पूछना, अगर तुमने प्रश्न पूछा तो तुम्हें यहां से जाना होगा। तुम्हें मुझ पर पूर्ण विश्वास करना होगा।” शिष्य ने सहमती दिखाते हुए गुरु की शर्तों को स्वीकार कर लिया।

अगली सुबह, गुरु उस युवा को लेकर एक नदी पर पहुंचे। वहां पर उन्होंने युवा के हाथ में एक घड़ा और एक बर्तन दिया, और कहा, “इस बर्तन से इस घड़े में पानी भर दो।” उस बर्तन में कोई पेंदी नहीं थी। शिष्य ने वह बर्तन देखा, तो वह चौका और सोचने लगा कि आखिर बिना पैंदी के घड़े में पानी कैसे भरा जा सकता है।

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वह गुरु से अपने मन में चल रही यह बात कहना चाहता था, लेकिन उसने कुछ नहीं बोला। वह गुरु के कहे अनुसार उस बर्तन से घड़े को भरने लगा, लेकिन बर्तन में ना पानी आता और ना ही घड़ा भरा। सुबह से दोपहर हो गई, शिष्य का धैर्य अब जवाब देने लगा और वह सोचने लगा, “गुरुदेव, पागल तो नहीं हो गए हैं भला बिना पेंदी के बर्तन से यह घड़ा तो जीवन भर नहीं भरेगा।”

आखिरकार शिष्य का धैर्य जवाब दे गया और उसने गुरु से पूछ ही लिया, “इस बर्तन से यह घड़ा कैसे भरेगा, गुरुदेव?” गुरु ने बस इतना ही कहा, “अब तुम जा सकते हो।” शिष्य ने भी सोचा, “ऐसे पागल गुरु के पास रहने से भी क्या फायदा?” और वह वहां से चला जाता है।

लेकिन रात में उसने एकांत में सोचा, “इतनी बात तो गुरुदेव को भी पता होगी, लेकिन फिर भी उन्होंने मुझे बिना पेंदी का बर्तन दिया। इसमें जरूर कोई बात होगी जिसे मैं समझ नहीं पाया।” वह शिष्य फिर अगली सुबह गुरु के पास पहुंचा और बोला, “गुरुदेव, मुझे माफ कर दें, मुझसे भूल हुई जो मैं यहाँ से वापस लौट गया।”

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गुरु ने कहा, “मैंने तुम्हें पहला ज्ञान दिया, और वह तुम ले नहीं पाए क्योंकि तुम पहले से ही अपना ज्ञान लिए घूम रहे हो जिस प्रकार बिना पेंदी के बर्तन से घड़े को नहीं भरा जा सकता, उसी प्रकार हमारे शरीर की इंद्रियां वह बिना पेंदी का बर्तन है जिससे हम मन रूपी घड़े को भरने का प्रयास करते हैं, लेकिन मन कभी भरता नहीं है, इसलिए मनुष्य कभी संतुष्ट नहीं हो पाता।”

शिष्य ने गुरु से क्षमा मांगी और कहा, “गुरुदेव, मुझे क्षमा करें और अपना शिष्य स्वीकार करें।” गुरु ने कहा, “तुम में धैर्य है, इसलिए तुम दोपहर तक धैर्य पूर्वक रुके रहे, तुम में समझ है, इसलिए तुम वापस आ सके, यहां से जो गया वह कभी वापस नहीं आया।

तुम्हारे अंदर अपनी सोच बदलने की क्षमता है, जो अपने विचारों को बदल सकते हैं, वह स्वयं का निर्माण भी कर सकते हैं।”

5. इंसान का सबसे बड़ा भय – Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi

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एक समय की बात है, गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ भ्रमण कर रहे थे। रास्ता बहुत लम्बा था, इसीलिए थकान होने के कारण भ्रमण करते समय सभी एक स्थान पर विश्राम के लिए बैठ गए। समय बिताने के लिए भगवान् बुद्ध ने अपने शिष्यों को एक कथा सुनाई।

किसी नगर में एक व्यक्ति रहता था। उसने प्रदेश के साथ व्यापार किया, बहुत मेहनत की और देखते ही देखते एक दिन वह बहुत बड़ा व्यापारी बन गया। उसके द्वारा की गई मेहनत फली और उसे बहुत कमाई भी हुई। उसने बहुत सारा धन इकठ्ठा कर लिया, तथा अब उसकी गिनती सेठों में होने लगी। महल जैसी हवेली बन गई, ऐशोआराम की हर एक चीज अब उसके पास थी।

अब सबकुछ था उसके पास – वैभव और बड़े परिवार के बीच उसका जीवन बड़े आनंद से बीतने लगा। एक दिन, किसी दूसरे नगर से उसका एक मित्र आया। बातचीत के बीच उसने बताया कि उसके यहाँ एक बहुत बड़ा सेठ है, जिसका व्यापार दूर देशों तक फैला हुआ है। धन की कोई कमी नहीं है उसे, वह जो चाहे आसानी से प्राप्त कर सकता है।

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लेकिन आज वह सेठ गुजर गया है, उसकी मृत्यु हो गई है। बेचारे की लाखों की धन संपत्ति पड़ी रह गई। सारा धन जो उसने कमाया, सब धरा का धरा रह गया। यह बात बहुत ही सहज भाव से कही गई थी, लेकिन उस आदमीं के मन को डगमगा गई।

मित्र की इस बात से उसका मन परेशान हो गया, व्यक्ति सोचने लगा कि एक दिन उस सेठ की तरह वह भी तो मर जाएगा, एक ना एक दिन उसे भी तो मृत्यु की शय्या पर लेटना ही होगा, अपने शरीर का त्याग करना ही होगा। मेरा भी सबकुछ यहीं धरा का धरा रह जाएगा, जो मैंने कमाया, जो कुछ भी हासिल किया, सब छूट जाएगा।

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मेरा घर, मेरा व्यापार, मेरा धन, सब छूट जाएगा। अपने मन में चल रहे इन प्रश्नों के तूफ़ान से वह परेशान हो रहा था। उसी क्षण से उसे बार-बार मौत की याद सताने लगी। हाय, मौत आएगी, उसे ले जाएगी और सबकुछ यहीं छूट जायेगा। मारे चिंता के उसकी देह सूखने लगी। देखने वाले देखते कि उसे किसी चीज की कमी नहीं है।

उस पर उसके भीतर का दुःख ऐसा था कि किसी से कहा भी नहीं जा सकता था। धीरे-धीरे व्यापारी बिस्तर पर पड़ गया। वह बीमारी की चपेट में आ गया। बहुत इलाज कराया, कई वैद्यों को दिखाया, जो इलाज किया जा सकता था सब किया, लेकिन उसका रोग कम होने की बजाय बढ़ता ही गया।

Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi

एक दिन, एक साधु उसके घर पर आए। उस आदमी ने बेबसी से उसके पैर पकड़ लिए और रो-रोकर अपनी सारी व्यथा उन्हें बता दी। व्यक्ति की बात सुनकर सुनकर साधु हंस पड़े और बोले, “तुम्हारे रोग का इलाज तो बहुत ही सरल है। इसे तो बहुत ही आसानी से ठीक किया जा सकता है।”

साधु की इतनी बात सुनते ही तो जैसे उस आदमी के खोए प्राण मानों लौट आए, अधीर होकर उस व्यक्ति ने पूछा, “स्वामीजी, वह इलाज क्या है?” साधु ने कहा, “देखो, मौत का विचार जब मन में आए, तो जोर से कहना कि जब तक मौत नहीं आएगी, मैं जियूँगा। इस नुस्खे को सात दिन तक आजमाओ, मैं अगले सप्ताह फिर आऊंगा, तब तुम मुझे बताना की तुम्हारा रोग ठीक हुआ की नहीं।”

इतना कहकर साधु वहां से चले गए। साधु के जाने के बाद व्यक्ति ने सात दिनों तक वैसा ही किया जैसा साधु ने कहा था। जब भी उसे मृत्यु का भय सताता, वह एक ही बात कहता, “जब तक मौत नहीं आएगी, मैं जियूँगा।” सात दिन के बाद, जब साधु महाराज दुबारा व्यक्ति के पास आए, तो देखते हैं कि वह आदमी बीमारी के चंगुल से बाहर आ गया है और आनंद के गीत गा रहा है।

Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi

उसे देखकर ऐसा लगता है जैसे यह वह आदमी है ही नहीं जिसे मैं एक सप्ताह पहले रोता हुआ और भयभीत छोड़कर गया था। साधु को देखकर वह व्यक्ति दौड़ा और उनके चरणों में गिर गया और बोला, “महाराज, आपने मुझे बचा लिया। आपके कारण आज मैं अपनी बीमारी से, अपने डर से बाहर आ गया हूँ।

आपकी दवा ने मुझपर जादू का सा असर किया है। मैंने समझ लिया है कि जिस दिन मौत आएगी, उसी दिन मरूंगा, उससे पहले नहीं।” साधु ने कहा, “वत्स, मौत का डर सबसे बड़ा डर है, यह जितनों को मारता है, मौत उतनों को नहीं मरती।”

6. बल से नहीं, सेवा भाव से सब हासिल होगा – Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi For Success

Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi

एक समय की बात है, महात्मा बुद्ध और उनके शिष्य किसी नगर से अपना प्रवचन देकर वापस लौट रहे थे। धीरे धीरे शाम ढलती जा रही थी, अँधेरा गहराता जा रहा था। इतने लम्बे सफर के कारण बुद्ध के शिष्यों के चेहरों पर थकान साफ़ झलक रही थी।

बुद्ध समझ चुके थे की सभी शिष्यों को विश्राम की आवश्यकता है, अतः उन्होंने एक सुरक्षित स्थान देख कर शिष्यों को रुक कर कुछ देर विश्राम करने का आदेश दिया।

विश्राम करते करते कुछ समय बाद एक शिष्य ने बुद्ध से एक प्रश्न किया, “क्या विद्या को किसी से बल द्वारा भी सीखा जा सकता है?” बुद्ध बोले, “कदापि नहीं, विद्या को केवल सेवा भाव से ही सीखा जा सकता है।” इस सम्बन्ध में मैं तुम्हे एक बहुत ही बलशाली राजा की कहानी सुनाता हूँ। इसे ध्यान से सुनों –

एक फ़कीर था वह जंगल में घांस फूंस की कुटिया बना कर रहता था। उसे एक विद्या आती थी जिसमें वह महारथी था वह पीतल को सोने में बदल सकता था, लेकिन इस विद्या का प्रयोग वह तभी करता था जब उसे उसकी बोहोत ज्यादा आवश्यकता होती थी, जैसे की गरीबों की सहायता के लिए।

Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi For Success

एक दिन एक बोहोत ही गरीब ब्राह्मण उसके पास आया। उसको अपनी कन्या का विवाह करना था और उसके पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं थी। उसने फ़कीर को अपनी सारी परेशानी बताई। फ़कीर ब्राह्मण की बात सुनकर समझ गया था कि यह सचमुच परेशानी में है।

उसने पीतल के एक बर्तन को सोने का बनाकर उसे दे दिया और कहा की इस बर्तन को बेचकर उन रुपयों से अपनी बेटी का विवाह कर लेना। ब्राह्मण उस बर्तन को लेकर एक सुनार की दुकान पर गया।

जब उसने सुनार को वह बर्तन दिखाया तो सुनार को संदेह हुआ कि ऐसे फटेहाल आदमी के पास सोने का बर्तन कहाँ से आया, इसने जरूर यह बर्तन राजा के यहाँ से चुराया होगा। हो न हो, यह राजा का ही है। सुनार उसे पकड़कर राजा के पास ले गया। राजा ने उस ब्राह्मण से पूछा कि क्या बात है तुम्हारे पास यह बर्तन कहाँ से आया

ब्राह्मण ने सारी बात सच सच बता दी। यह बात सुनकर राजा के मन में लालच आ गया। उसने सोचा, “फ़कीर को बुला कर यह विद्या अवश्य सीखनी चाहिए।” यह सोचकर उसने ब्राह्मण को तो छोड़ दिया, साथ ही अपने एक सिपाही से कहा कि जाओ और उस फ़कीर को पकड़ कर मेरे पास ले आओ।

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सिपाही गया और थोड़ी देर में ही फ़कीर को लेकर आ गया। “राजा ने कहा फ़कीर से कहा, तुम पीतल को सोना बनाना जानते हो?” फ़कीर बोला, “जी हाँ।” राजा बोला, “यह विद्या हमें सिखा दो।” फ़कीर निडरता से बोला, “नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता,

जानते हो मैं कौन हूँ?” राजा ने कड़ककर जवाब दिया, “फ़कीर बोला जनता हूँ, खूब अच्छी तरह से जनता हूँ।” राजा को बोहोत गुस्सा आया, उसने कहा, “मैं तुम्हे पंद्रह दिन का समय देता हूँ, अगर इस बीच तुमने मुझे विद्या सिखा दी तो ठीक है, नहीं तो फांसी पर लटकवा दूंगा।” इतना कहकर उस फकीर को भेज दिया।

राजा रोज शाम को उसके पास सिपाही भेजता कि वह तैयार है या नहीं। फ़कीर का भी एक ही उत्तर होता – नहीं, ऐसी विद्या को राजा छोड़ना नहीं चाहता था। उसने देख लिया कि फ़कीर को डराने धमकाने से कोई नतीजा नहीं निकलेगा, तो उसने दूसरा उपाय सोचा।

जब सात दिन बाकी रह गए तो उसने अपना भेष बदला और फ़कीर के पास जाकर उसकी सेवा करने लगा। उसने फ़कीर की इतनी सेवा की कि फ़कीर खुश हो गया। एक दिन फ़कीर ने राजा ने पूछा, “बोल, तू क्या चाहता है?” राजा ने कहा, “मुझे आप वह विद्या सिखा दीजिये जिससे आप पीतल से सोना बना देते हैं।”

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फ़कीर ने उसे वह विद्या सिखा दी और कहा, “देख, इसका इस्तेमाल दीन दुखियों की भलाई के लिए ही करना।” राजा अपने महल लौट आया। पंद्रहवे दिन उसने फ़कीर को अपने महल में दोबारा बुलाया और कहा, “बोलो, विद्या सिखाने के लिए तैयार हो या नहीं?” फ़कीर ने कहा, “नहीं, तो तुम्हे फांसी लगवा दूँ।”

फ़कीर बोला, “जरूर, तब राजा ने गर्व से हंसकर कहा, “जिस विद्या का तुम्हे इतना घमंड है, उसे मैं जानता हूँ।” इतना कहकर राजा ने एक पीतक के बर्तन को सोने का बना कर दिखा दिया। फ़कीर ने कहा, “राजन, तुमने यह विद्या किसी की सेवा करके सीखी है। विद्या कभी भी डरा धमकाकर हासिल नहीं की जा सकती।”

सभी शिष्य कहानी का अर्थ समझ चुके थे। इसके पश्चात सभी ने एक साथ भोजन किया और विश्राम करने लगे।

7. ये 4 गुण ही, आपको विनाश की और ले जाते है – Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi For Peace

Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi

दोस्तों, कोई व्यक्ति अच्छा या बुरा है, सही या गलत है, धर्म को मानाने वाला है या अधर्मी है—इसका पता आप किस तरह लगाएंगे? आप इसका पता सिर्फ एक ही तरीके से लगा सकते हैं, उसके गुणों का आंकलन करके। जिस भी व्यक्ति के गुण अच्छे होते हैं, वह व्यक्ति एक उत्तम व्यक्ति है।

और जैसा कि आप सभी जानते हैं, खराब गुणों वाला व्यक्ति खुद का जीवन तो अंधकारमय और निरर्थक बनाता ही है, साथ ही उस व्यक्ति से जुड़े लोगों का जीवन भी उससे प्रभावित होता है।

दोस्तों, गौतम बुद्ध की आज की इस कहानी में बुद्ध ने 4 गुणों के बारे में बात की है, जो व्यक्ति के विनाश का कारण बनते हैं। अर्थात इन गुणों से ग्रस्त व्यक्ति अपने साथ-साथ दूसरों के जीवन को भी विनाश की ओर ले जाता है।

तो चलिए, कहानी की तरफ बढ़ते हैं और जानते हैं, कौन से हैं वो 4 गुण जिनकी वजह से आपका जीवन खराब हो रहा है। यह कहानी ऐसे ही एक युवक की है, जो किसी नगर में रहा करता था। उसका नाम था अंकमाल।

Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi For Peace

अंकमाल नामक यह युवक एक दिन महात्मा बुद्ध के सामने उपस्थित हुआ और कहा, “हे बुद्ध, मैं संसार की कुछ सेवा करना चाहता हूँ। मैं संसार को कुछ देना चाहता हूँ, ताकि संसार में सभी लोग मुझे याद करें, मेरा सम्मान करें।

आप मुझे जहाँ भी भेजना चाहें, भेज दें, जो भी कराना चाहें, करा लें, ताकि मैं लोगों को धर्म का रास्ता दिखा सकूं।”

महात्मा बुद्ध अंकमाल के बारे में पहले से ही जानते थे। अंकमाल की इस बात को सुन कर वो जोर से हंस पड़े और कहा, “तात, संसार को कुछ देने से पहले अपने पास कुछ होना भी आवश्यक है। जबकि तुम्हारे पास कुछ है ही नहीं, तो तुम संसार को क्या दोगे?

तुम संसार को ऐसा क्या सिखा सकते हो? जाओ, पहले अपनी योग्यता बढ़ाओ और फिर संसार की भी सेवा कर लेना।” अंकमाल को महात्मा बुद्ध की यह बात समझ में आ गई। वह तुरंत वहां से चल पड़ा और विभिन्न प्रकार की कलाओं के अभ्यास में जुट गया।

उसने तरह-तरह की अलग-अलग विद्याएं सीखी, जैसे बाण बनाने से लेकर चित्र कला तक, और मल्ल विद्या से लेकर मल्लकारी तक। जितनी भी कलाएं हो सकती थीं, उसने वो सारी कलाएं सीख ली और उनपर लगभग दस वर्षों तक कठोर अभ्यास भी किया।

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और दस वर्षों के इस कठोर अभ्यास के बाद, वह इन सब कलाओं में माहिर हो चुका था। अंकमाल इन सब कलाओं में इतना माहिर था कि सारे देश में उसकी ख्याति फैल गई।

अंकमाल अपनी प्रशंसा से आप ही प्रसन्न होकर अभिमानपूर्वक लौटा और तथागत की सेवा में उपस्थित हुआ। अपनी योग्यता का भाषण करते हुए उसने कहा, “हे तथागत, अब मैं चौसट कलाओं का ज्ञाता हूँ और अब मैं संसार के प्रत्येक व्यक्ति को कुछ न कुछ सिखा सकता हूँ।

अब मुझे आज्ञा दीजिए ताकि मैं इस संसार की सेवा कर सकूं, लोगों को ज्ञान दे सकूं, लोगों को सही राह दिखा सकूं, और उन्हें सही धर्म का मार्ग बता सकूं।”

महात्मा बुद्ध फिर से एक बार मुस्कुराए और कहा, “अभी तो तुम कलाएं सीख कर आए हो, पहले तुम्हें इसकी परीक्षा देनी होगी। और अगर तुम इस परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाते हो, तब मैं तुम्हे आज्ञा दे दूंगा।”

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अंकमाल ने अपनी चौसट कलाओं के अभिमान में महात्मा बुद्ध से कह दिया, “जी हाँ, ठीक है, मैं तैयार हूँ। बताइए मुझे क्या करना होगा?” महात्मा बुद्ध ने कहा, “तुम्हे अभी कुछ नहीं करना, तुम अपने घर जाओ।” अंकमाल ने ऐसा ही किया, महात्मा बुद्ध को प्रणाम किया और घर की ओर चला गया।

अगले दिन महात्मा बुद्ध एक साधारित नागरिक का भेष बदलकर अंकमाल के पास पहुँचे और उससे अकारण ही खरी-खोटी सुनाने लगे। अंकमाल 64 कलाओं का ज्ञाता था, लेकिन उसे अपना अपमान सहन नहीं हुआ। और क्रोध में आकर वह महात्मा बुद्ध को मारने के लिए दौड़ पड़ा।

जब महात्मा बुद्ध ने अंकमाल को इस तरह से देखा, तो वो हंस कर लौट आए। उसी दिन दोपहर के वक्त, दो बौद्ध भिक्षु अंकमाल के पास पहुँचे और उससे कहा, “हे आचार्य, हमारे राज्य के राजा ने आपके अंदर इतने गुण देखे हैं कि वह आपको हमारे राज्य का मंत्री बनाना चाहते हैं। क्या आप इस पद को स्वीकार करेंगे?”

अंकमाल लोभ में आ गया। उसने कहा, “हाँ हाँ, क्यों नहीं।” अभी चलो। इतना सुनकर दोनों श्रमण मुस्कुराने लगे और चुपचाप वहां से लौट आए। अंकमाल को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि पहले वह नागरिक आया, उसने मुझे बेवजह ही खरी-खोटी सुनाई।

और जब मैंने उसे मारने के लिए दौड़ाया, तो वह चुपचाप हंस कर वहाँ से लौट गया। और अब ये दो श्रमण यहाँ पर आए, जो मुझे मंत्री बनाने के लिए राजा के पास ले जाने वाले थे। लेकिन जैसे ही मैंने उन्हें हाँ कहा, ये दोनों भी मुस्कुरा कर यहाँ से लौट गए।

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अंकमाल सोच ही रहा था, तभी थोड़ी देर बाद भगवान बुद्ध पुनः उपस्थित हुए, उनके साथ आम्रपाली भी थी। अंकमाल ने महात्मा बुद्ध और आम्रपाली का स्वागत किया और उनका आदर सत्कार किया। लेकिन जितनी भी देर तथागत वहां रहे, अंकमाल का सारा ध्यान सिर्फ और सिर्फ आम्रपाली पर ही था।

जबतक महात्मा बुद्ध अपनी बातें बता रहे थे, तब तक अंकमाल सिर्फ आम्रपाली को ही देखता रहा। महात्मा बुद्ध ने अपनी सारी बातों को समाप्त किया और आम्रपाली के साथ वापस आश्रम लौट आए।

धीरे-धीरे रात हो गई और फिर अगले दिन महात्मा बुद्ध ने अंकमाल को आश्रम में बुलाया और अंकमाल से कहा, “वत्स, क्या तुमने काम, क्रोध, लोभ और अहंकार पर विजय की विद्या भी सीखी है?” अंकमाल को पिछले दिन की सारी घटनाएं याद आ गई और वह समझ गया कि वह सब महात्मा बुद्ध ने ही किया था।

उसने लज्जा से अपना सिर झुका लिया और महात्मा बुद्ध से अपने अहंकार के लिए क्षमा मांगने लगा। और फिर उसी दिन से वह आत्मविजय की साधना में लग गया।

8. बुरे समय में कभी हिम्मत मत हारो – Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi For Happy Life

Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi

यह उस समय की बात है, जब गौतम बुद्ध आत्मज्ञान की खोज के लिए तपस्या कर रहे थे। उनके मन में विभिन्न प्रकार के प्रश्न उमड़ रहे थे, जिनका उत्तर वह खोज रहे थे। उन्हें अपने प्रश्नों का उत्तर चाहिए था, लेकिन उनके द्वारा किए गए अनेक प्रयासों के बाद भी उन्हें सफलता नहीं मिल रही थी।

वे आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या करने लगे। अनेकों कष्ट सहन किए, कई स्थानों की यात्राएँ की। परन्तु जो समाधान उन्हें चाहिए था, वह उन्हें नहीं मिला। अपने प्रश्नों के उत्तर ना मिलने पर एक दिन उनके मन में कुछ निराशा का संचार हुआ।

वे सोचने लगे कि धन, माया, मोह और संसार की समस्त वस्तुओं का भी त्याग कर दिया फिर भी आत्मज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई। क्या मैं कभी आत्मज्ञान प्राप्त कर सकूंगा? आत्मज्ञान को प्राप्त करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?

इसी प्रकार के अनेक प्रश्न गौतम बुद्ध के मन में उठ रहे थे। तपस्या में सफलता का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था, और इधर गौतम बुद्ध ने प्रयासों में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। उन्होंने वह हर संभव प्रयास किया जो वे कर सकते थे।

वे उदास मन से इन प्रश्नों पर मंथन कर रहे थे। इसी दौरान उन्हें प्यास लगी, वे अपने आसान से उठे और जल पीने के लिए सरोवर के पास गए। वहां उन्होंने एक अद्भुत दृश्य देखा।

Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi For Happy Life

जिस दृश्य को देख कर उनका मन प्रफुल्लित हो उठा, उन्होंने देखा कि एक गिलहरी मुँह में कोई फल लिए सरोवर के पास आई, फल उसके मुँह से छिटक कर सरोवर में गिर गया। गिलहरी ने देखा कि फल पानी की गहराईयों में जा रहा है। गिलहरी ने बिना किसी डर के पानी में छलांग लगा दी, उसने अपना शरीर पानी में भिगोया और बाहर आ गई।

बाहर आकर उसने अपने शरीर पर से पानी झाड़ दिया और पुनः सरोवर में कूद गई। उसने यह काम जारी रखा। वह बार-बार पानी में कूदती, फिर बाहर आती, फिर से अपने शरीर पर से पानी झाड़ती, और फिर से पानी में कूद जाती।

गौतम बुद्ध टक टकी लगाए यह दृश्य देख रहे थे, लेकिन गिलहरी इस बात से बिलकुल अनजान थी कि कोई उसे देख रहा है, लेकिन वह बिना किसी बात की फ़िक्र किए अपने काम में जुटी रही। गौतम बुद्ध सोचने लगे कि ये कैसी गिलहरी है सरोवर का जल यह कभी नहीं सूखा सकेगी लेकिन इसने हिम्मत नहीं हारी।

यह पूरी शक्ति लगा कर सरोवर को खाली करने में जुटी है। अपने लक्ष को प्राप्त करने में जुटी है। बिना किसी चिंता के, बिना किसी परेशानी के, बिना यह सोचे कि वह सफल होगी या नहीं, वह अपने काम में मग्न है, तो फिर मैं तो मनुष्य हूँ।

आत्म ज्ञान नहीं प्राप्त हुआ तो मन में निराशा के भाव आने लगे हैं। मैं पुनः तपस्या में जुट जाऊंगा और तब तक नहीं रुकूंगा जब तक कि मुझे आत्म ज्ञान प्राप्त नहीं हो जाता।

इस प्रकार गौतम बुद्ध ने गिलहरी से भी शिक्षा प्राप्त की और तपस्या में जुट गए। वह अपनी तपस्या में तब तक जुटे रहे जब तक वह दिन नहीं आ गया जब उन्हें आत्म ज्ञान प्राप्त हुआ और वे राजकुमार सिद्धार्थ से भगवान बुद्ध हो गए।

9. उत्तम व्यक्ति कौन ? – Latest Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi

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बहुत समय पुरानी बात है, गौतम बुद्ध एक शहर में प्रवास कर रहे थे। उनके कुछ शिष्य भी उनके साथ थे। उनके शिष्य एक दिन शहर में घूमने निकले, तो उस समय शहर के लोगों ने उन्हें बहुत बुरा भला कहा।

उनके साथ बहुत अभद्र व्यव्हार किया। शिष्यों को लोगों द्वारा किए गए इस व्यवहार की उम्मीद नहीं थी। उन्हें बहुत बुरा लगा और वे वापस लौट आए।

गौतम बुद्ध ने जब देखा कि उनके सभी शिष्य बहुत क्रोध में दिख रहे हैं, तो बुद्ध ने शिष्यों से पूछा कि क्या बात है, तुम सभी इतने क्रोध और तनाव में क्यों दिख रहे हो? क्या कोई बात है जिस वजह से तुम सब दुखी हो?

तभी एक शिष्य क्रोधित होकर बोला, हमें यहाँ से तुरंत प्रस्थान करना चाहिए, गुरुदेव। आज जब हम शहर में घूमने गए तो यहाँ के लोगों ने बिना किसी वजह हमें बहुत बुरा भला कहा। हमारा बहुत अपमान किया।

शिष्यों ने कहा कि जहाँ हमारा सम्मान न हो, वहां हमें एक पल भी नहीं रहना चाहिए। यहाँ के लोग दुर्व्यवहार के सिवा और कुछ जानते ही नहीं हैं। यहाँ के लोग नहीं जानते कि किसी इंसान से कैसा व्यवहार किया जाता है।

Latest Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi

शिष्यों की यह बात सुनकर, गौतम बुद्ध मुस्कुराते हुए बोले, “क्या किसी और जगह तुम सदव्यवहार की अपेक्षा रखते हो?” दूसरा शिष्य बोला, “गुरुदेव, यदि हम किसी दूसरे शहर में जाएंगे तो वहां तो अच्छे लोग होंगे ही,

कम से कम वहां के लोग यहाँ के लोगों की तरह हमें भला-बुरा तो नहीं बोलेंगे। हमारा अपमान तो नहीं करेंगे।” तब गौतम बुद्ध बोले, किसी जगह को सिर्फ इसीलिए छोड़ देना गलत होगा कि वहां के लोग आपके साथ दुर्व्यवहार करते हैं या आपका अपमान करते हैं।

हम तो संत हैं, हमें तो कुछ ऐसा करना चाहिए कि जिस स्थान पर भी हम जाएँ, उस स्थान को तब तक ना छोड़ें जब तक अपनी अच्छाइयों से वहां के लोगों को सुधार ना दें। हम जिस भी स्थान पर जाएँ, वहां के लोगों का कुछ ना कुछ भला करके ही वापस लौटें।

आखिर हमारे अच्छे व्यवहार के बाद वह कब तक बुरा व्यवहार करेंगे? एक ना एक दिन उनमें अच्छी समझ अवश्य पैदा होगी, और आखिर में उन्हें सुधरना ही होगा।

गौतम बुद्ध आगे कहते हैं कि वास्तविकता में संतों का कार्य तो ऐसे लोगों को सुधारना ही होता है जो बुरा आचरण करते हैं, लोगों का अपमान करते हैं। यही वह चुनौती है जब हम विपरीत परिस्थितियों में खुद को साबित कर सकें।

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ये सभी बातें सुनकर बुद्ध के प्रिय शिष्य आनंद ने प्रश्न किया, “तथागत उत्तम व्यक्ति किसे कहते हैं?” इस पर बुद्ध ने जवाब दिया, “जिस प्रकार युद्ध में बढ़ता हुआ हाथी चारों तरफ के तीरों को सहते हुए भी आगे बढ़ता जाता है, ठीक उसी तरह उत्तम व्यक्ति भी दूसरों के अपशब्दों को सहते हुए अपना कार्य करता रहता है।

खुद को वश में करने वाले प्राणी से उत्तम कोई और नहीं हो सकता। जिस भी व्यक्ति ने खुद को वश में कर लिया समझ लो, उसने हर किसी चीज़ पर विजय प्राप्त कर ली।

गौतम बुद्ध की ये बातें शिष्यों को अच्छी तरह से समझ में आ गई, और उन्होंने वहां से वापस जाने का इरादा त्याग दिया।

10. दूसरों से पहले खुद को बदलो – Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi To Remove Sadness

Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi

एक बार की बात है, गौतम बुद्ध अपने कुछ भिक्षुओं के साथ एक नगर में पोहोचते हैं। क्योंकि गौतम बुद्ध अपने ज्ञान को लोगों तक पहुँचाने के लिए नगर-नगर, गाँव-गाँव घूमते फिरते थे, इसलिए वह उस गाँव के लोगों को इकट्ठा करके उन्हें प्रवचन सुनाना शुरू करते हैं।

प्रवचन शुरू करने के कुछ समय बाद ही गौतम बुद्ध के पास नगर का ही एक व्यक्ति उनसे मिलने आता है और कहता है, “मैं आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ।” बुद्ध कहते हैं, “तुम्हारा जो भी प्रश्न है, तुम मुझसे पूछ सकते हो।”

वह व्यक्ति बुद्ध से कहता है, “आपको हजारों लाखों लोगों ने सुना होगा, आप हमेशा शांति की बातें करते हैं, खुद को जानने की बातें करते हैं, सत्य को जानने की बातें करते हैं। परंतु मुझे ऐसा नहीं लगता कि किसी ने खुद को जाना है या परम शांति को पाया है।

यदि लोग आपको जानने और सुनने के बाद भी परम शांति को नहीं पा रहें हैं, खुद को नहीं जान रहे हैं, तो आपको सुनने का फायदा ही क्या है? ऐसी स्थिति में आपका प्रवचन सुनना तो व्यर्थ ही हुआ।”

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बुद्ध मुस्कुराते हैं और उस व्यक्ति से कहते हैं, “तुम्हारा प्रश्न बहुत अच्छा है, मैं तुम्हे इसका उत्तर भी दूंगा, परंतु आज नहीं, इसका उत्तर मैं तुम्हे कल सुबह दूंगा। कल सुबह तुम मेरे पास आना।

परंतु ध्यान रखना, मेरे पास आने से पहले तुम्हे एक काम करना होगा।” वह व्यक्ति बुद्ध से कहता है, “क्या काम करना होगा मुझे?” बुद्ध कहते हैं, “मेरे पास आने से पहले तुम्हे इस पूरे नगर में घूमकर एक-एक व्यक्ति से यह पूछना होगा कि कितने लोग परम शांति को पाना चाहते हैं और खुद को जानना चाहते हैं।

बस, उनसे उनकी इच्छाएं जान लेना और मुझे आकर बताना।” वह व्यक्ति अपने घर चला जाता है और अगले दिन सुबह ही उठकर वह हर व्यक्ति के घर जाता है और उनसे पूछता है कि तुम्हारे जीवन का लक्ष्य क्या है? कोई कहता है कि मेरे पास धन नहीं है, मुझे धन चाहिए।

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कोई कहता है कि मेरे पास संतान नहीं है, मुझे संतान चाहिए। कोई स्वास्थ्य के लिए हैरान है, तो कोई सुन्दर पत्नी मांगता है और कोई समाज में आदर और सम्मान मांगता है, परंतु कोई भी व्यक्ति परम शांति को नहीं मांगता।

वह व्यक्ति नगर के सभी लोगों की बात सुनकर बुद्ध के पास पहुँचता है। फिर बुद्ध उस व्यक्ति से कहते हैं, “पूछा तुमने सभी लोगों से कि वे क्या चाहते हैं?” वह व्यक्ति बुद्ध से कहता है, “हाँ प्रभु, मैंने सभी लोगों से पूछा,

परन्तु कोई भी परम शान्ति को पाना ही नहीं चाहता, खुद को जानना ही नहीं चाहता।” बुद्ध कहते हैं, “जब कोई व्यक्ति खुद को जानना ही नहीं चाहता, परम शान्ति को पाना ही नहीं चाहता, तो मैं चाह कर भी क्या कर सकता हूँ?”

वह व्यक्ति बुद्ध से कहता है, “यह तो लोग बोहोत गलत कर रहे हैं।” बुद्ध कहते हैं, “नहीं, वे कुछ भी गलत नहीं कर रहे हैं। उन्हें जो सही लगता है, वह वही चाहते हैं, और वे उसी के लिए प्रयास भी कर रहे हैं।”

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वह व्यक्ति बुद्ध से कहता है, “इस तरह तो लोग भटक रहे हैं, ऐसे में लोग कहाँ पहुंचेंगे? क्या इसका कोई उपाय नहीं है कि लोग सही रास्ते पर आ सकें?” बुद्ध मुस्कुराते हैं और कहते हैं, “इसका सिर्फ एक ही उपाय है।

अगर तुम समझ गए कि सही रास्ता क्या है, तो तुम उस सही रास्ते पर चलो। अगर तुम समझ गए हो कि बाहर की खोज करना व्यर्थ है, तो तुम अब भीतर की खोज करो।

और अगर तुम यह सोचते हुए बैठे रहोगे कि लोग भी उसी रास्ते पर चलने चाहिए जो सही है, तो तुम कभी भी सही रास्ते पर नहीं चल पाओगे। इसीलिए तुम लोगों की प्रतीक्षा करना छोड़ दो।

तुम अपना पहला कदम बढ़ाओ, और अगर तुम सब कुछ जानते हुए भी अभी भी अपना पहला कदम नहीं बढ़ा रहे हो, तो तुम भी और लोगों में ही शामिल हो जाओगे,

और फिर कोई और आकर मुझसे यही प्रश्न पूछेगा कि मुझे इतने लोग सुनने के लिए आते हैं, लेकिन उनके भीतर कोई बदलाव क्यों नहीं होता? इसीलिए जरुरी बात ये नहीं कि लोग सही रास्ते पर चल रहे हैं या नहीं, जरुरी बात यह है कि अगर तुम्हे समझ आ गया है कि सही क्या है और गलत क्या है,

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अगर तुम अब सही चुन पा रहे हो तो उसी रास्ते पर आगे बढ़ो। लोग अभी मुझे सुन रहे हैं, उनमें से ज्यादातर लोगों के मन में एक ही बात रहती है कि जीवन में अब बदलाव होना चाहिए।

मैं आप सभी को कहना चाहता हूँ कि बदलाव तब तक नहीं होगा जब तक आप बदलाव को चुनेंगे। नहीं और मैं चाहता हूँ आप बदलाव को चुनें और अपना जीवन बेहतर बनाएं। अपने जीवन में उन्नति करें।

अंतिम शब्द :-

Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi – दोस्तों, आज की इस ब्लॉग पोस्ट में मैंने आपके साथ गौतम बुद्ध की 10 ऐसी कहानियोंको साझा किया है, जिन्हें पढ़कर आप अपने जीवन को पहले से और बेहतर बना सकते हैं।

गौतम बुद्ध का जीवन और उनकी शिक्षाएं हमें दुःख से मुक्ति, आंतरिक शांति, और सच्चे सुख के मार्ग का प्रदर्शन करती हैं। देखा जाए, तो सभी लोग किसी ना किसी परेशानी से जूझ रहे हैं, अपने जीवन के दुखों में फंसकर एक बेहतर जीवन नहीं जी पा रहे हैं।

आज की इन कहानियों Best Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi पढ़कर आपको बोहोत कुछ सीखने को मिला होगा। गौतम बुद्ध की कहानियां हमें यह याद दिलाती हैं कि हम सभी में बदलाव की क्षमता है और हम सब अपने जीवन को सरल, संवेदनशीलता, और मानवता की दिशा में बदल सकते हैं।

दोस्तों आशा करती हूँ आज की यह पोस्ट आपको पसंद आई होगी गौतम बुद्ध कि इन मोटिवेशनल Life Changing Gautam Buddha Motivational Stories In Hindi कहानियों को अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें।और अपनी और उनकी जिंदगी को बेहतर बनाएं।

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3 बेस्ट गौतम बुद्ध की कहानियां

5 बेस्ट गौतम बुद्ध की कहानियां

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कर्म बड़ा या भाग्य ?

FAQ

गौतम बुद्ध का जन्म कहाँ हुआ था?

गौतम बुद्ध का जन्म लुम्बिनी, नेपाल में हुआ था, जो अब दशरथनगर के नाम से जाना जाता है।

बुद्ध के उपदेशों का सार क्या है?

बुद्ध के उपदेशों का सार है “चारीत्रिक आत्म-परिवर्तन” और “दुःख से मुक्ति” की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन।

बुद्ध की प्रमुख शिक्षाएं कौन-कौन सी हैं?

बुद्ध की प्रमुख शिक्षाएं मध्यमार्ग, आस्था, कर्मपथ, और संयमपथ पर आधारित हैं।

बुद्ध के जीवन की पहली महत्वपूर्ण घटना क्या थी?

बुद्ध की जीवन की पहली महत्वपूर्ण घटना उनकी महापरिनिर्वाण थी, जो उनकी निर्वाण की स्थिति में जाने का समय है।

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