Best Gautam Buddha Motivational Story In Hindi | आलस्य को दूर कैसे भगाएं ?

Gautam Buddha Motivational Story In Hindi

Best Gautam Buddha Motivational Story In Hindi | आलस्य को दूर कैसे भगाएं ?

Best Gautam Buddha Motivational Story In Hindi | आलस्य को दूर कैसे भगाएं ? दोस्तों आज की इस ब्लॉग पोस्ट में मैंने आपको गौतम बुद्ध की एक ऐसी कहानी (Gautam Buddha Motivational Story in Hindi ) के बारे में बताया है,


जिसे पढ़कर आप अपनी उस समस्या को हल कर पाएंगे, जिसकी वजह से आपने अपने जीवन में ना जाने क्या कुछ खोया है। जी हाँ, आज की इस कहानी “Best Gautam Buddha Motivational Story In Hindi” से आप अपनी laziness की समस्या को जड़ से ख़त्म कर पाएंगे और अपने जीवन में उन्नति की और अग्रसर होंगे।

गौतम बुद्ध की प्रेरणास्पद कहानियाँ “Latest Gautam Buddha Motivational Story In Hindi” जीवन के महत्वपूर्ण सवालों के उत्तर खोजने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती हैं। इन कहानियों से आप यह भी जानेंगे कि कैसे एक व्यक्ति अपने जीवन को शांति, समृद्धि, और आत्मिक समृप्ति के माध्यम से सफलता की ओर अग्रसर हो सकता है।

Life Changing Gautam Buddha Motivational Story In Hindi” आपको जीवन के बारे में बोहोत कुछ सिखा सकती है। आज के इस blog post पर अंत तक बने रहें, मुझे यकीन है कि आप यहाँ से बोहोत कुछ सीख कर ही जायेंगे।

प्रस्तावना: ( Introduction )

दोस्तों, गौतम बुद्ध कि आज की ये Best Gautam Buddha Motivational Story In Hindi कहानी आपकी उस समस्या को हल कर देगी, जिसकी वजह से आपने जीवन में ना जाने क्या कुछ खोया है। यह वह समस्या है जिसकी जड़ें इतनी ज्यादा मजबूत हो चुकी हैं कि व्यक्ति को खुद ही पता नहीं चलता कि उसे यह समस्या है, और इस समस्या का नाम है आलस, यानी laziness। इसी laziness की वजह से आप अपना कीमती जीवन यूँ ही बर्बाद किये जा रहे हैं।

आपको आज जिस शिखर पर होना चाहिए था, आप वहां नहीं हैं। अब सवाल यह है कि इस समस्या को, यानी laziness को, खत्म कैसे किया जाए? इस laziness को खत्म करके, अपने जीवन को बुलंदियों तक कैसे पहुंचाया जाए?

तो चलिए, गौतम बुद्ध से जानते हैं इस आलस को जड़ से खत्म करने के ऐसे उपाय, जो शायद ही आपने कभी जाने होंगे। मैं आशा करती हूँ कि आप इस कहानी से बोहोत कुछ सीखेंगे और अपने जीवन को बुलंदियों तक ले जायेंगे। चलिए शुरू करते हैं आज की कहनी।

कहानी: आलस्य को दूर कैसे भगाएं ? – Gautam Buddha Motivational Story in Hindi

दोस्तों, आज की यह कहानी है एक ऐसे व्यक्ति की, जो अपने आलसी होने की आदत से छुटकारा पाना चाहता था। वह अपनी इस आदत से इतना ज्यादा दुखी हो चुका था कि वह अपना कोई भी काम समय पर नहीं कर पाता था।

वह जानता था कि आलस करने की वजह से उसका जीवन खराब हो रहा है, और उसने अपने आलसी पल से छुटकारा पाने की बहुत कोशिशें की। लेकिन वह कभी इसमें सफल नहीं हो सका,

और दिन गुजरने के साथ-साथ वह और ज्यादा आलसी होता गया। जब उसे इस समस्या से बाहर आने का कोई उपाय समझ नहीं आया।

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तो एक दिन वह गौतम बुद्ध के पास आया और दुखी मन से बोला, “हे बुद्ध, मैं एक समस्या से ग्रसित हूं। कृपया आप मुझे इस समस्या से बाहर निकालें। मैं जो कर सकता था, सब करके देख लिया, अब तो मुझे बस आप ही का सहारा है।”

बुद्ध बोले, “क्या समस्या है तुम्हें?” वह व्यक्ति बुद्ध से कहता है, “मैं बहुत आलसी हूं और अपने आलस्य पन के कारण मैं कोई भी काम समय पर नहीं कर पाता हूं। मेरे घर और परिवार में सभी मुझसे बहुत ज्यादा परेशान हैं, बल्कि घरवाले ही नहीं, मैं खुद भी अपने आप से बहुत परेशान हूं।”

“हे बुद्ध, कृपया करके आप मुझे इस समस्या से बाहर निकालें और मुझे बताएं कि मैं क्या करूं?”

व्यक्ति की बात सुनकर बुद्ध मुस्कुराए और बोले, “तुम्हें कैसे पता कि तुम आलसी हो और किस प्रकार का आलस्य है तुम्हें ? व्यक्ति बोला, ‘यह तो मुझे नहीं पता कि आलस्य क्या होता है और मैं आलस से ग्रसित हूं या नहीं, लेकिन यह जो भी है, बहुत बुरा है।

इसने मेरा पूरा जीवन खराब कर दिया है।'” बुद्ध बोले, “आलस्य एक मानसिक अवस्था होती है जो तुम्हारे मन में उत्पन्न होती है, जो एक विचार है, भाव है, जिसे इंसान अपने अन्दर लाता है।”

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बुद्ध आगे कहते हैं, “मनुष्य को दो प्रकार से आलस्य आता है, शारीरिक और मानसिक।”

शारीरिक आलस्य का पहला कारण भोजन है। जब हम ऐसा भोजन करते है जिसमें खुद कोई जीवन नहीं है, तो वह भोजन शरीर के लिए बोझ बन जाता है और फिर यह तुम्हारे शरीर में आलस्य पैदा करता है,”

“क्योंकि हमारा शरीर भोजन से मिलने वाली ऊर्जा पर चलता है, जैसा भोजन हम इसे देते है, वैसी ऊर्जा यह हमें देता है। इसलिए, अगर तुम आलस्य से बचना चाहते हो तो आराम और आसानी से पचने वाला भोजन करो जो प्राकृतिक रूप से हमें मिलता है।”

शारीरिक स्तर पर ही दूसरा कारण है सही से ना बैठना, सही से ना सोना और सही से ना चलना। बुद्ध ने आश्रम के भिक्षुओं की तरफ इशारा करते हुए उस व्यक्ति से कहा, “जरा इन भिक्षुओं को ध्यान से देखो, इनके चलने, बैठने और लेटने में संतुलन है।”

“जब ये चलते हैं तो इनके पैरों के बीच तालमेल होता है, बैठते हैं तो गर्दन ऊपर और रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी होती है, जब लेटते हैं तो शरीर बिल्कुल स्थिर और तनाव रहित होता है, जिससे वे आरामदायक और गहरी नींद लेते हैं।”

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वह व्यक्ति बोला, “क्या पर्याप्त नींद आवश्यक है?” बुद्ध बोले, “हाँ, पर्याप्त नींद बहुत आवश्यक है। किसी भी व्यक्ति को ना तो बहुत ज्यादा सोना चाहिए और ना ही बहुत कम। यदि तुम रात को पर्याप्त नींद नहीं लेते हो तो कल का पूरा दिन आलस्य और थकान से भरा होगा।”

“इसी तरह यदि किसी रात तुम पर्याप्त से ज्यादा नींद ले लेते हो तब भी अगला दिन आलस्य से भरा हुआ होता है, अर्थात तुम्हें अपनी नींद में भी संतुलन लाना होगा, सही समय पर सोने का अभ्यास करना होगा, और सही समय पर जागने का भी।”

बुद्ध की बातें सुनकर व्यक्ति ने कहा, “आप बिल्कुल सच कह रहे हैं। मैंने भी यह कई बार महसूस किया है कि जब कभी भी मैं रात में अच्छी नींद नहीं लेता, तब अगला पूरा दिन मुझे पहले से भी अधिक आलस्य आता है।

ऐसा लगता है जैसे मेरे शरीर में कोई ऊर्जा ही नहीं बची हो।” इतना कहकर व्यक्ति चुप हो जाता है।

बुद्ध बोले, “शारीरिक स्तर पर तीसरा कारण है सुबह जल्दी ना उठना।” व्यक्ति बोला, ” है भगवान बुद्ध, मैं सुबह जल्दी उठना तो चाहता हूँ पर उठ नहीं पाता।

मैं रोज यह संकल्प करके सोता हूँ कि कल सुबह जल्दी उठूंगा, लेकिन मैं कभी जल्दी नहीं उठ पाता और जल्दी ना उठ पाने के कारण मुझे पता ही नहीं चलता कि मेरा पूरा दिन कब और कैसे गुजर गया।”

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गौतम बुद्ध बोले, “तुम जल्दी तभी उठ पाओगे जब रात को सही समय पर सोओगे। बुद्ध ने फिर आश्रम के भिक्षुओं की तरफ इशारा करते हुए कहा कि देखो इन आश्रम के भिक्षुओं को, इनके रात का सोने का समय निश्चित होता है,

तभी यह सब सुबह जल्दी उठते हैं। हर एक भिक्षु का अनुशासन होता है, कि वह हर सुबह सूर्य उदय से पहले ही जाग जाते हैं और वही इनके जीवन में संतुलन लाता है।

बुद्ध आगे कहते हैं, ‘इंसान अनुशासन को एक बंधन समझता है, लेकिन यह सच नहीं है, अनुशासन हमें बांधता नहीं, बल्कि आजाद करता है।’ ‘यदि तुम आलस्य से छुटकारा पाना चाहते हो, तो एक निश्चित दिनचर्या बना लो।’

व्यक्ति बोला, ‘हे बुद्ध, कृपया करके बताएं कि मैं शुरुआत कहां से करूं और कैसे करूं?, चलने से, बैठने से, लेटने से या सुबह जल्दी उठने से शुरुआत करूँ।’

बुद्ध बोले – ‘इसी समय से, यहीं से शुरुआत करो, जो भी कर रहे हो उसे ध्यान से करो, अपने जीवन में संतुलन लाओ, अपनी एक दिनचर्या बनाओ, और उसी के मुताबिक कार्य करो।’

बुद्ध आगे कहते हैं अब तुम मन के स्तर से आलस्य को समझो। 

मानसिक आलस्य का पहला कारण होता है खुद पर विश्वास ना करना। जब हम किसी कार्य को करने की कोशिश कई बार कर चुके होते हैं, लेकिन फिर भी वह कार्य हमसे नहीं हो पाता,

ऐसी परिस्थितियों में हम सोचते हैं कि हम इस कार्य को करने के काबिल नहीं हैं, यह कार्य हमारे बस का नहीं है, या यह कार्य हम नहीं कर सकते, तो ऐसी परिस्थितियों में हमें आलस्य आता है। क्योंकि हम वह कार्य पहले भी नहीं कर पाए थे।

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हम मन को यह नहीं समझाते की पहले और अब के कार्य में बहुत फर्क है साथ ही मानसिक तौर पर हम वह नहीं हैं जो पहले थे।तब से लेकर अब तक हमने बहुत कुछ सीखा है।

मानसिक आलस्य से बचना है तो खुद पर विश्वास करना सीखो। खुद को इस बात का विश्वास दिलाओ कि भले ही तुम कोई कार्य पहले ना कर पाए हो, पर अपनी मेहनत और लगन से इस बार तुम वह कार्य अवश्य ही कर लोगे।

मानसिक स्तर पर दूसरा कारण है आलसी और छोटी सोच वाले व्यक्तियों के साथ रहना।

कई बार ऐसा होता है कि तुम आलसी नहीं होते, लेकिन आलस्य से भरे लोगों के साथ रहने से तुम भी वैसे ही हो जाते हो, क्योंकि हमारा मन आराम चाहता है, मन खुद कार्य नहीं करता, उससे कार्य कराना पड़ता है।

अगर तुम किसी ऐसे व्यक्ति की संगत में आते हो जो आलसी होता है, तो तुम्हारा मन भी ऐसी ही चीजों को करने के लिए आकर्षित हो जाता है, क्योंकि आलस्य करने में कोई मेहनत नहीं लगती।

धीरे-धीरे तुम भी आलस्य के कारण अपने कार्यों को कल पर टालने लगते हो, और तुम्हारा मन इस आदत को गहराई तक अपना लेता है, जिससे बाहर आना तुम्हे मुश्किल प्रतीत होता है।

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बुद्ध की बातें सुनकर वह व्यक्ति बोला, “आप सही कह रहे हैं। मैंने यह भी महसूस किया है। मेरे बहुत से मित्र हैं जिनका जीवन भी लगभग मेरे जैसा ही है। वे भी मेरी तरह हर समय आलस्य से भरे रहते हैं, और जब मैं उनके साथ होता हूँ, तो खुद को और भी ज्यादा आलस्य से भरा पाता हूँ।”

आगे बुद्ध बोले, “मानसिक स्तर का तीसरा कारण है काम को टालना। यह ( काम को टालना ) मानसिक तनाव का सबसे बड़ा कारण है। अक्सर हम अपने कार्यों को कल पर टाल देते हैं।

आज का काम कल पर और कल का काम परसों पर टालते रहते हैं और उस कार्य को करने का दिन कभी नहीं आता। अन्यथा, जब हम अपने कार्यों को समय पर नहीं कर पाते, तो हमें आत्मग्लानि घेर लेती है।

हमें उस कार्य को ना कर पाने का पछतावा होने लगता है। हमें पता नहीं चलता, लेकिन धीरे-धीरे यह आदत हमारे अंदर घर कर जाती है और जिंदगी खराब कर सकती है। इसलिए जो कार्य आज कर सकते है, उसे आज ही ख़त्म करो, कल पर मत टालो।”

बुद्ध ने कहा मानसिक आलस्य का चौथा कारण है लक्ष्य स्पष्ट ना होना। मान लो, तुम एक रेगिस्तान में फंसे हो और तुम्हे प्यास लगी है, तो क्या करोगे? वह व्यक्ति बोला, “मैं पानी ढूंढने के लिए आस पास किसी गांव की तलाश करूंगा।”

बुद्ध बोले, “यदि गांव नहीं मिला, तो क्या करोगे?” वह व्यक्ति बोला, “तो भी मैं पानी ढूंढने का प्रयास करूंगा, क्योंकि मेरे पास और कोई विकल्प ही नहीं है।” बुद्ध बोले, “इसी तरह, यदि तुम सुबह उठकर व्यायाम करना चाहते हो, लेकिन नहीं कर पा रहे हो,

तो तुम्हारी नज़र सपष्ट नहीं है कि तुम्हे व्यायाम क्यों करना है? या फिर, अगर तुम किसी भी कार्य को करना चाहते हो, लेकिन कर नहीं पा रहे हो, तो इसका कारण भी तुम्हारे लक्ष का स्पष्ट नहीं होना हो सकता है।

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सबसे पहले ये जानने की कोशिश करो कि तुम्हे कोई भी कार्य क्यों करना है, और जैसे ही तुम्हे क्यों का जवाब मिल जाता है, उस कार्य को करने के लिए तुम्हारा नजरिया स्पष्ट हो जाता है, और तुम उस कार्य को कर लेते हो?”

मानसिक आलस्य का पांचवा कारण है किसी कार्य को करने की बड़ी वजह का ना होना। मान लो तुम किसी सुनसान जगह से कीमती गहने लेकर जा रहे हो,

रास्ता बोहोत लम्बा होने के कारण तुम थक जाते हो और कहीं बैठकर आराम करना चाहते हो, यह सोचकर तुम एक पेड़ के नीचे बैठ जाते हो। तुम पेड़ के नीचे आराम कर ही रहे होते हो कि तुम देखते हो सामने से एक डाकू आ रहा है,

तो क्या ऐसी परिस्थिति में भी तुम्हारा आलस्य तुम्हे भागने से रोकेगा? क्या तुम अपने गहने बचाने के लिए वहां से नहीं भागोगे?

नहीं, तुम्हारा आलस्य तुम्हे सिर्फ उन्हीं कार्यों को करने से रोकता है जिन्हें करने की तुम्हारे पास कोई बड़ी वजह नहीं होती।

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बुद्ध ने कहा, “मेरी बात ध्यान से सुनो। एक बात हमेशा याद रखना, जहां स्पष्टता है और कार्य करने की कोई बड़ी वजह है, वहां आलस्य हो ही नहीं सकता। 

वह व्यक्ति गौतम बुद्ध से बोला, “हे बुद्ध, आज मुझे आलस्य का सारा खेल समझ आ गया। आज से मैं आपके बताये रास्ते पर ही चलूँगा। आज आपने मुझे जो ज्ञान दिया है, मुझे इसके बारे में कुछ मालूम ही नहीं था।

आपने कितनी सहजता से मेरी इस समस्या का समाधान कर दिया धन्यवाद, तथागत।

निष्कर्ष:- कहानी से आज हमने सीखा। ….

दोस्तों, आज की इस कहानी (Gautam Buddha Motivational Story in Hindi) में महात्मा गौतम बुद्ध ने हमें इन तथ्यों से अवगत कराया कि आलस्य क्या होता है? आलस्य को कैसे दूर करें?

आज की गौतम बुद्ध की इस Life Changing Gautam Buddha Motivational Story In Hindi कहानी से हमने जाना कि मनुष्यों को आलस्य दो प्रकार से आता है – शारीरिक और मानसिक। इन दोनों ही पहलुओं को कहानी में बोहोत ही विस्तार से समझाया गया है, जो कि आप समझ भी गए होंगे।

इसीलिए आज ही अपने जीवन से इस आलस्य नाम की बीमारी को दूर भगाएं और अपने जीवन को उस बुलंदियों तक ले जाएं जहाँ आप पोहोंचना चाहते हैं।

आशा करती हूँ, आज की यह Gautam Buddha Motivational Story In Hindi For Life पोस्ट आपको पसंद आई होगी और आपने इससे बोहोत कुछ सीख भी लिया होगा।

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FAQ

मनुष्यों को आलस कितने प्रकार से आता है ?

मनुष्य को दो प्रकार से आलस्य आता है, शारीरिक और मानसिक।

आलस्य को दूर करने के लिए जीवनशैली में कैसे परिवर्तन करें?

आलस्य को दूर करने के लिए स्वस्थ और नियमित जीवनशैली अपनाएं, सही आहार खाएं, और सुनिश्चित करें कि आपका सोने का समय और जागने का समय नियमित हो।

आलस्य को कम करने के लिए सही आहार का क्या महत्व है?

सही आहार खाना आलस्य को कम करने में मदद कर सकता है। आहार में पूर्ण पोषण, प्रोटीन, फल, सब्जियाँ, और पूरे अन्नों को शामिल करें।

स्वास्थ्य और आलस्य के बीच क्या संबंध है?

स्वास्थ्य और आलस्य के बीच गहरा संबंध है। स्वस्थ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य आलस्य को कम करने में मदद कर सकते हैं।

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