3 Best Gautama Buddha Story In Hindi | गौतम बुद्ध की कहानियां

Gautama Buddha Story In Hindi

3 Gautama Buddha Story In Hindi | गौतम बुद्ध की कहानियां

3 Best Gautama Buddha Story In Hindi | गौतम बुद्ध की कहानियां: दोस्तों आज की इस ब्लॉग पोस्ट में मैं आपको गौतम बुद्ध की ऐसी 3 कहानियों (Gautama Buddha Story In Hindi) से अवगत कराऊंगी जिन कहानियों में शायद आपको आपकी कई समस्याओं का हल मिल जाए। गौतम बुद्ध की प्रेरणास्पद कहानियाँ (Life Changing Gautama Buddha Story In Hindi ) जीवन के महत्वपूर्ण सवालों के उत्तर खोजने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती हैं, इन कहानियों से आप यह भी जानेंगे कि कैसे एक व्यक्ति अपने जीवन को शांति, समृद्धि, और आत्मिक समृप्ति के माध्यम से सफलता की ओर अग्रसर हो सकता है।

Inspirational Gautam buddha story In Hindi आपको जीवन के बारे में बोहोत कुछ सिखा सकती है आज के इस blog post पर अंत तक बने रहें मुझे यकीन है आप यहाँ से बोहोत कुछ सीख कर जायेंगे।

1 कर्म क्या है ( What Is Karma ) – Gautam Buddha Story In Hindi

Gautama Buddha Story In Hindi

एक समय की बात है, जब महात्मा गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ ध्यान और ज्ञान की चर्चा कर रहे थे। उनके आश्रम में एक शिष्य ने एक महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा: “महात्मा, कर्म क्या है और कर्म हमारे सुख दुख का कारण कैसे बनते हैं?”

महात्मा गौतम बुद्ध मुस्कुराए और बोले, “वत्स, मैं तुम्हे इस सवाल का जवाब जरूर दूंगा, लेकिन उसके लिए मुझे तुम्हे एक कहानी सुननी होगी। इसीलिए मैं तुमको यह कहानी सुनाने जा रहा हूँ। इस कहानी के माध्यम से तुम सभी शिष्य यह समझ जाओगे कि कर्म क्या है?”

“एक समय की बात है, एक राजा और उसका मंत्री अपने देश के भ्रमण पर गए। भ्रमण करते करते जब वे एक बाजार में पोंहचे तो वहां राजा को एक दुकानदार दिखा जो चंदन की लकड़ियां बेच रहा था। उस दुकानदार को देखते ही राजा को एक अजीब ख़याल आया।

राजा मन ही मन सोच रहा था कि कल मैं इस दुकानदार को फांसी की सजा दे दूँ। मन में चल रही यह बात राजा ने मंत्री को बताई। इससे पहले कि मंत्री कुछ बोलता राजा उस दुकानदार की दुकान के सामने से आगे निकल चुके थे।

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और दुकानदार को फांसी लगाने की बात को छोड़ कर दूसरी बातें करने लगे। लेकिन मंत्री के मन से वह फांसी वाली बात निकल ही नहीं रही थी। वह मंत्री बहुत ही चिंतित हो गया।

वह यह समझ ही नहीं पा रहा था कि आखिर राजा दुकानदार को फांसी लगाने के बारे में क्यों सोच रहे थे। आखिर दुकानदार की गलती क्या है? दुकानदार से बिना कुछ बात किए, बिना कुछ सोचे समझे महाराज ऐसा फैसला लेने के बारे में क्यों सोच रहे हैं?

मंत्री अपनी सोच में डूबा हुआ राजा के साथ राजदरबार वापस चला गया। वापस लौटने तक सूरज डूब चूका था, इसीलिए राजा अपने कक्ष में विश्राम के लिए चले गए। लेकिन मंत्री को रात भर नींद नहीं आई।

फिर जैसे तैसे करके वह सो पाया। सुबह जगने के बाद मंत्री के मन में एक ख़याल आया कि क्यों ना मैं भेष बदल कर दुकानदार के पास जाऊं। इसिलिए वह भेष बदल कर एक साधारण प्रजा का रूप बनाकर उस दुकानदार के पास गया और उससे पूछा – तुम क्या बेचते हो? दुकानदार ने जवाब दिया – मैं चंदन की लकड़ियां बेचता हूँ।

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फिर मंत्री ने आसपास के लोगों से दुकानदार के बारे में पूछना शुरू किया। सब ने जवाब दिया कि यह दुकानदार तो किसी से बोलता तक नहीं है, हमेशा दुखी रहता है। अपने ही ख्यालों में खोया रहता है। सभी दुकानदारों की बात सुनकर मंत्री को बात समझ में आ गई। मंत्री फिर वापस उसी दुकानदार के पास गया और पूछा – तुम दुखी क्यूँ रहते हो? क्या बात है जो तुम्हे परेशान करती है?

दुकानदार बोला – मैं इसलिए दुखी और परेशान रहता हूं क्योंकि मैं अपनी जिंदगी से खुश नहीं हूँ। मेरी चन्दन की लकड़ियां भी कोई नहीं खरीदता। लोग मेरी दूकान पर आते हैं, चन्दन की लकड़ियों को सूंघते हैं और बोलते हैं, ‘बहुत ही सुंदर है, बहुत ही अच्छी महक है।’ लेकिन कोई ख़रीददता नहीं है। इसलिए मैं बहुत दुखी रहता हूँ।

मंत्री दुकानदार की ये बातें सुनकर खुद भी दुखी हो गया। वह सोचने लगा कोई भी दुकानदार दुखी क्यों नहीं होगा। अगर उसकी दूकान का कोई भी सामान खरीदा ना जाए, जबकि सामान मे कोई कमी न हो। मंत्री सोचने लगा की यह दुकानदार तो पहले ही अपने दुखों की वजह से इतना दुखी रहता है। फिर भी राजा के मन में इसे फांसी देने का ख्याल आया।

पता नहीं क्यों राजा इस दुकानदार को फांसी पर लटकाना चाहते हैं, अर्थात राजा के मन में आए हुए इस विचार का उत्तर अभी तक मंत्री को नहीं मिला पाया था। मंत्री ने फिर दुकानदार से पूछा – भाई क्या हो अगर तुम्हारी दुकान की सारी चंदन की लकड़ियां ऐसे ही रखी कि रखी रह जाएं। कोई भी उन्हें ना खरीदे तो?

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दुकानदार गुस्से में बोला – हां मैं जानता हूं मेरी चंदन की लकड़ियां ऐसे ही रखी रह जाएंगी कोई नहीं खरीदेगा मेरी लकड़ियों को। इसीलिए मैं सोचता हूं कि हमारे देश का राजा जल्दी से मर जाए। क्योंकि अगर वह जल्दी से मर जाता तो मैं उस राज दरबार में उस राजा के दाह संस्कार के लिए अपनी चंदन की लकड़ी देता जिससे मुझे कुछ पैसे मिल जाते।

और इस बाजार के अलावा बाकी के लोगों को भी मेरी चंदन की लकड़ियों के बारे में पता चलता। तो अगर ऐसा हो जाता तो फिर शायद कुछ लोग मेरी दुकान से लकड़ियां खरीदने जरूर आते।

मंत्री दुकानदार की बातें सुनकर सब कुछ समझ गया और उसके मन में एक विचार आया। मंत्री ने दुकानदार से चंदन की कुछ लकड़ियां खरीदी। इस खरीदारी से दुकानदार को कुछ पैसे भी मिल गए और वह थोड़ा खुश भी हो गया। मंत्री चंदन की लकड़ियों को लेकर वापस राजदरबार चला आया।

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राजदरबार पहुच कर मंत्री ने उन चंदन की लकड़ियों को राजा के समक्ष रख दिया और बोला कि हे राजन! ये चंदन की लकड़ियां उसी दुकानदार ने आपको भेंट की है, जिस दुकानदार को आप फांसी देने के बारे में सोच रहे थे।

राजा ने मंत्री की बातों को ध्यान से सुना और उन चन्दन की लकड़ियों को सूंघा तथा सूंघने के बाद बड़े ही प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा, “यह चंदन की लकड़ियां बहुत ही ज्यादा खुशबूदार हैं। मैंने पहले कभी चन्दन की इतनी खुशबूदार लकड़ियां नहीं देखी।”

दुकानदार के इस अनोखे भेंट से राजा बहुत खुश हुए और मंत्री को कुछ स्वर्ण मुद्राएं देकर बोलें – “जाओ, उस दुकानदार को ये स्वर्ण मुद्राएं इनाम में देना और बोलना कि आज के बाद महल में जब कभी भी चंदन की लकड़ी की जरूरत पड़ेगी,

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तब तुम्हारी दुकान से ही लकड़ियां ली जाएगी।” राजा का यह व्यवहार देख कर मंत्री बड़ा खुश हुआ और मुस्कुराने लगा तथा यह सोचने लगे कि अब तो राजा के मन में उस दुकानदार को फांसी देने का विचार आ ही नहीं सकता। क्योंकि अब तो हमेशा राजदरबार के लिए चंदन की लकड़ियों का इंतेज़ाम की ज़िम्मेदारी उस दुकानदार को जो मिल गयी है।

मंत्री स्वर्ण मुद्राओं को लेकर वापस दुकानदार की दूकान की तरफ चल दिया। इधर राजा इस विचार में पड़ गए कि वह दुकानदार तो बड़ा ही अच्छा इंसान है। वह कितना सज्जन है कि बिना किसी वजह के उसने मेरे लिए उपहार भेजा, जिस वक्त मैं उसके बारे में यह सोच रहा था कि मैं इसको कल फांसी दे दूंगा,

तब शायद उसके मन में उस समय यह विचार चल रहा था कि राजन पहली बार मेरे दुकान के सामने आए हैं क्यूँ न मैं उनको अपनी सुंदर और खुशबूदार लकड़ियों को भेंट करूँ और आज उसने मुझे भेंट भी किया।

बेवजह ही मैं उसको फांसी देने के बारे में सोच रहा था। इधर मंत्री दुकानदार के पास पहुंच गया। मंत्री ने राजा के द्वारा दी गई स्वर्ण मुद्राओं को दुकानदार को देते हुए कहा कि जिन चंदन की लकड़ी को कल मैं खरीद कर लेकर गया था। उन चंदन की लकड़ियों को राजा ने बहुत पसंद किया। और इनाम के तौर पर तुमको यह कुछ स्वर्ण मुद्राएं दी हैं।

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साथ ही साथ मंत्री ने उस दुकानदार को यह भी बताया कि, अब आज के बाद राज दरबार में जब कभी भी चंदन की लकड़ियों की जरूरत पड़ेगी, तो सारी चंदन की लकड़ियां तुम्हारी दुकान से ही ली जाएगी। दुकानदार मंत्री की बात सुनकर बहुत ही खुश हो गया। मंत्री ने दुकानदार से पूछा, “क्यूँ भाई… तुम तो राजा के बारे में इतना बुरा भला सोचते थे। लेकिन देखो राजा तुम्हारी कितना चिंता करते हैं!

राजा कितने अच्छे हैं! राजा अपनी प्रजा के बारे में कभी भी गलत नहीं सोचते हैं! वो अपनी प्रजा का हमेशा ख्याल रखते हैं।” इधर दुकानदार भी मंत्री की बातें सुनकर खुद को कोस रहा था। उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था। दुकानदार मंत्री से बोला – “मैं राजा के बारे में कितना गलत सोचता था। राजा तो बड़े ही अच्छे इंसान है, बड़े ही भले राजा है।

उनका दिल तो सोने के समान है। भगवान करे कि राजा की बहुत ही लंबी आयु हो।” यह बात सुनकर मंत्री भी बहुत खुश हुआ। फिर मंत्री वहां से वापस राजदरबार को चला गया। बस, यहीं पर महात्मा गौतम बुद्ध ने इस कहानी को समाप्त किया। कहानी समाप्त करने के बाद उन्होंने शिष्यों से पूछा कि अब बताओ कि कर्म क्या है? किसी शिष्य ने कहा कर्म ‘बोले हुए शब्द है’।

किसी शिष्य ने कहा कर्म ‘वाणी’ है। तो किसी ने कहा कर्म ‘सोच’ है। तो किसी ने कहा कर्म भावना है, वगैरा-वगैरा….। अपने सारे शिष्यों का जवाब सुनने के बाद महात्मा गौतम बुद्ध ने बताया कि कर्म हर एक इंसान की खुद के विचार होते हैं। हमारे विचार जैसे रहेंगे, हम वैसे ही कर्म करेंगे और उन्ही विचारों के द्वारा किए हुए कर्म हमारे सुख और दुख के लिए उत्तरदाई होंगे।

अर्थात हमारे विचार अगर गलत है तो हमारे द्वारा की हुई कर्म भी गलत होगी, तथा इसका परिणाम भी गलत निकलेगा। परिणामस्वरूप, हम दुखी रहेंगे। अगर हमारे विचार सही रहेंगे तो हम सही कर्म करेंगे, सही कर्म करेंगे तो फिर सही फल मिलेगा, जिससे हम सुखी रहेंगे। इसीलिए प्रिय शिष्यों, अपने विचारों पर ध्यान दो। विचारों पर ध्यान देने से ही तुम्हारे कर्म अच्छे हो सकेंगे?

2 अछूत बौद्ध भिक्षु की कहानी – Life Changing Gautama Buddha Story In Hindi

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गौतम बुद्ध अपने भिक्षुओं के साथ नगर नगर गांव गांव घूम कर भिक्षा ग्रहण करते थे तथा लोगों को ज्ञान का मार्ग दिखाते थे। इसी तरह एक समय की बात है, बुद्ध अपने भिक्षुओं के साथ भिक्षाटन के लिए किसी गाँव की तरफ जा रहे थे। रास्ता थोड़ा संकरी था, बहुत से कांटे पत्थर रास्ते में पड़े थे। तभी अचानक बुद्ध के पैरों में काटा लग गया।

काटा इतनी जोर से लगा कि चुभते ही रक्त की धार बहने लगी। बुद्ध के भिक्षु, जो उनके साथ भिक्षाटन के लिए जा रहे थे, रक्त को रोकने का प्रयास करते हैं और एक कपड़ा फाड़कर बुद्ध के पैर पर बांध देते हैं।

गांव के बहुत से लोग इस घटना को देख रहे थे, जिनमें से ज्यादातर लोग ऐसे थे जो गौतम बुद्ध से ईर्ष्या करते थे। उन्होंने बुद्ध से कहा कि हम तो तुम्हें परमज्ञानी समझते थे, सोचते थे तुम दुःख और दर्द से ऊपर उठ चुके हो, लेकिन दर्द को तुम भी सहन नहीं कर सकते हो। तुम पाखंडी हो, और ये आज सिद्ध हो चुका है।

वे आगे बोले हमें तुम्हारे गांव में आने की खबर पहले ही मिल चुकी थी, इसीलिए हमने तुम्हारी राह में कांटे बिछा दिए, बस यही देखने के लिए कि तुम सच में महात्मा हो या बस महात्मा होने का ढोंग करते हो। इस गाँव में तुम्हारा स्वागत नहीं, तिरस्कार होगा। इस गाँव में तुमको कोई भिक्षा नहीं मिलेगी। हम ढोंगी महात्मा को भिक्षा नहीं देते।

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लेकिन गांव वालों की ऐसी कड़वी बातें सुनने के बाद भी बुद्ध ने उन लोगों से अनुरोध किया की कृपया करके मुझे इस गाँव से भिक्षा लेने दो। बुद्ध के इर्ष्यालुओं ने बुद्ध का उपहास बनाते हुए कहा कि अगर तुम्हे भिक्षाटन के लिए इस गाँव में आना हैं तो तुम्हे अपने रक्त की बलिदानी देनी होगी। तुमको इस काँटों के रास्ते से गुजरना होगा।

अगर तुम ऐसा करते हो तो हम तुम्हे भिक्षा दे देंगे। भगवान बुद्ध ने उनकी चुनौती स्वीकार की और काँटों से भरे उस रास्ते पर चलने के लिए अपने कदम आगे बढ़ाया। काँटों पर चलने के बावजूद गौतम बुद्ध मुस्कुरा रहे थे, वे हँसते हँसते उन काँटों वाले रास्ते को पार कर गए। बुद्ध के साहस को देखकर गाँव वाले चकित रह गए, कुछ लोगो की तो आँखें फटी की फटी रह गई।

गाँव वाले सोचने लगे कि बुद्ध भिक्षा के लिए दुसरे गाँव भी जा सकते थे, तो फिर काँटों पर चल कर क्या साबित करना चाहते हैं। गाँव वाले बुद्ध के सन्देश को इतनी जल्दी नहीं समझ पाए। यहाँ पर बात भिक्षा की नहीं बल्कि जीवन को बदलने की थी। गाँव वालो की भीड़ में एक ऐसा लड़का भी था जो देखने में बिलकुल फटेहाल, गंदा, और मैला दिख रहा था।

गांव वाले के साथ वह भी बुद्ध पर हो रहे अत्याचार को देख रहा था और बुद्ध पर हो रहे उस अत्याचार को देखकर वह बहुत दुखित हो गया और दौड़कर गया और बुद्ध के पैरों के सामने से कांटों को हटाने लगा। बुद्ध के इर्ष्यालू उस लड़के को रोकने की कोशिश करते हैं और गांव से दाना पानी न देनें की तथा गांव से बाहर निकाल देने की धमकी देने लगते हैं।

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लेकिन उस लड़के ने किसी कि न सुनी और ना ही अपने साथ होने वाले किसी अंजाम की परवाह की, वह बस बुद्ध के रास्ते से कांटों को हटाने में लग गया और बोला हे भगवन आप इन मुठी भर लोगों कि वजह से अपने आपको कष्ट मत दीजिये। आप गांव में प्रवेश कीजिये, बहुत सारे लोग आपको भिक्षा देने के लिए आतुर हैं।

गौतम बुद्ध ने उस लड़के को अपने पास बुलाया और आशीर्वाद देने लगे, लेकिन जैसे ही बुद्ध आशीर्वाद देने के लिए हाथ बढ़ाते हैं, सुमित पीछे हट गया और बोला – हे भगवान, आप मुझे छूकर अपने आपको अपवित्र और दूषित न करें।

महात्मा बुद्ध बोले – तुम अपने आपको दूषित क्यों कहते हों? स्पर्श से कभी कोई भी दूषित नहीं होता हैं। मनुष्य तो लोभ, लालच, घृणा, इर्ष्या से दूषित होता हैं। तुम्हारे अन्दर तो प्रेम भरा हैं, तुम तो प्रेम की मूर्ति हो, तुम दूसरों का सुख चाहते हो। तो फिर तुम अपवित्र कैसे हुए ? बुद्ध के बोल सुनकर कुछ लोग बोले,

तुम तो अपने आपको बड़े ज्ञानी कहते हो, तुमको जाति का कोई ज्ञान ही नहीं है, क्या तुम्हें इतना भी नहीं पता कि यह लड़का अछूत है, तुम पाखंडी हो, तुम्हें कोई ज्ञान नहीं। गौतम बुद्ध बड़े ही शांत भाव से कहते हैं – मानव से मानव की मानवता छीनना पाखंडी की निशानी है। मुझे पाखंडी बोलकर यदि आपको संतोष मिलता है, तो मेरे लिए दुःख का कोई विषय नहीं है।

इतना सुनकर कुछ लोग बुद्ध पर बरस पड़े और बोले – परन्तु यह तो धर्म शास्त्र है, फिर यह पाखंड कैसे हुआ। बुद्ध बोले – हमारी उत्पति इस सृष्टि में हुई है, नदियों का पानी सभी की समान रूप से प्यास बुझाता है, खुले जंगलों की हवा भी भेदभाव नहीं करती है, खुला आसमान हमारे पिता के समान हमारी परवरिश करता है। सृष्टिकर्ता ने भी कोई भेदभाव नहीं किया है, फिर हम इंसान कौन होते हैं भेदभाव करने वाले।

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एक इंसान दूसरे इंसान में भेद करके ही अपने संबंधों को बिगाड़ता है। बुद्ध के वचन के बाद कुछ लोग कहते हैं अगर आप इतना ही कहते हैं तो इस लड़के को अपना भिक्षु क्यों नहीं बना लेते हैं। बुद्ध ने कहा कि अच्छा सुझाव हैं। गौतम बुद्ध ने उस लड़के से कहा कि अगर तुम चाहते हो तो तुम मेरा भिक्षु बन सकते हो।

बुद्ध के आमंत्रण पर वह लड़का पहला नीच जाति का बौद्ध भिक्षु बनता है। इस पूरे विवरण में केवल सुमित का ही जीवन नहीं बदला, शेष सभी लोगो का जीवन रूपांतरित हुआ।

3 सब्र का मीठा फल – Best Gautama Buddha Story In Hindi

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दोस्तों, बात बोहोत पुरानी है। जब महात्मा बुद्ध विश्व भर में भ्रमण कर रहे थे और बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे थे और लोगों को ज्ञान और शांति के उपदेश दे रहे थे, यह वह समय था। क्योंकि उन दिनों कोई वाहन नहीं हुआ करते थे, ना ही एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए कोई ख़ास प्रबंध था।

इसीलिए गौतम बुद्ध और उनके शिष्य मीलों पैदल यात्रा किया करते थे। एक बार गौतम बुद्ध एक गांव से गुजर रहे थे। बोहोत लम्बा रास्ता तय करके आए थे। सो उन्हें बोहोत प्यास लग आई। वे एक वृक्ष के नीचे बैठे बैठ गए। वहां पास में ही एक तालाब था। सो उस तालाब से पानी पीने का विचार करने लगे।

उन्होंने अपने एक शिष्य से कहा, “तुम जाओ और तालाब से इस घड़े में पानी भर कर ले आओ, तब तक हम यही इस पेड़ के नीचे बैठे हैं।” शिष्य ने कहा, “जी गुरु जी, मैं अभी तालाब से पानी लेकर आता हूँ” और गुरु जी की बात मानकर तालाब से पानी लाने के निकल गए। तालाब ज्यादा दूर नहीं था, सो वह जल्दी ही वहां पोहोंच गए।

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लेकिन वहाँ पोहोंच कर क्या देखते हैं कि तालाब के पास में जो किसान हैं, वह तालाब में अपने बैलों को नहला रहे हैं, तथा उन्हें साफ कर रहे हैं, और उस गांव की जो महिलाएं हैं, तालाब के उसी पानी में कपड़े धो रही हैं। कुल मिलाकर तालाब का पानी इतना गंदा था कि उसे पीना संभव नहीं लग रहा था। शिष्य को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे।

उधर गुरु जी प्यासे हैं और इधर ये तालाब का पानी इतना गन्दा है कि इसे पिया भी नहीं जा सकता। शिष्य को समझ नहीं आया कि इतना गंदा पानी गुरुदेव के लिए लेकर जाऊं तो जाऊं कैसे। फिर शिष्य ने सोचा कि थोड़ी देर यहाँ इंतजार करके देखता हूँ, शायद साफ पानी मिल जाये। लेकिन जब उन्हें पानी नहीं मिला तो वे वापस वहीँ लौट आये, जहाँ गौतम बुद्ध विश्राम कर रहे थे।

गौतम बुद्ध शिष्य से पूछते हैं, “क्या हुआ, तुम तो पीने का पानी लेने गए थे, फिर खाली हाथ क्यों लौट आए?” बुद्ध की बात सुनकर उस शिष्य ने उत्तर देते हुए कहा, “माफी चाहूंगा गुरुदेव, मैं तो पानी लेने गया था पर पानी इतना गंदा था कि मैं नहीं ला सका। आखिर इतना गन्दा पानी मैं आपके लिए कैसे ला सकता था?” गौतम बुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा, “चलो, थोड़ी देर आराम करते हैं।” और उन्होंने शिष्य को आराम करने के लिए भेज दिया।

आधे घंटे के बाद, बुद्ध ने उस शिष्य से फिर कहा कि तुम तालाब के पास जाओ और इस घड़े में पानी भर कर ले आओ मुझे बहुत प्यास लगी है। बुद्ध की बात सुन और उससे आज्ञा लेकर वह शिष्य तालाब के पास पहुंचता है।और देखता है कि तालाब की जो मिट्टी थी जिसके कारण वह पानी गन्दा लग रहा था वह नीचे बैठ चुकी थी।

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पानी स्वच्छ और साफ हो चुका था। शिष्य को यह देख कर तसल्ली हुई और उसने घड़े में पानी भरा और वापस गौतम बुद्ध के पास लौट आया और बोला कि मैं समझ नहीं पाया गुरुदेव” यह पानी साफ़ कैसे हो गया? जब मैं पहली बार में तालाब पर गया था तो यह पानी इतना गंदा था कि इसे पीने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता।

लेकिन जब मैं दोबारा पानी लेने गया तो पानी एकदम साफ़ था, यह कैसे हुआ गुरुदेव ? इस बात का उत्तर देते हुए गौतम बुद्ध बोले “यही बात मैं तुम्हें सिखाना चाहता था। पहले जब तुम तालाब के पास गए थे, तो तुमने देखा कि पानी गंदा था, और तुम विचलित होकर वहां से लौट आये फिर तुमने कुछ देर विश्राम किया और फिर दुबारा पानी लेने गए तो तुमने देखा कि पानी साफ हो गया। उसी तरह यदि तुम जीवन में सब्र से काम लोगे तो तुम वो सब कुछ प्राप्त कर सकते हो जो तुम प्राप्त करना चाहते हो।

गौतम बुद्ध आगे कहते हैं कि यदि तुमने थोड़ा सब्र किया होता तो तुम्हें दोबारा तालाब पर जाने की जरुरत नहीं पड़ती यदि तुमने जल्दबाजी ना की होती तो तुम्हें एक ही बार में तालाब का स्वच्छ पानी मिल जाता। तालाब की मिट्टी पानी के नीचे बैठ जाना तय था और पानी का साफ हो जाना भी तय था पर क्योंकि तुममे सब्र नहीं था

इसीलिए तुम्हें पहली बार में साफ पानी नहीं मिला और दूसरी बार मिल गया। धैर्य और सब्र किसी भी मुश्किल को पार करने के लिए महत्वपूर्ण हैं, अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तुम्हे हमेशा सब्र और धैर्य बनाए रखना चाहिए, चाहे हालात जैसे भी हों।

निष्कर्ष

दोस्तों आज की गौतम बुद्ध कि इन 3 बेस्ट गौतम बुद्ध की कहानियां (Gautam buddha story in hindi) को पढ़कर आप समझ ही गए होंगे की गौतम बुद्ध की शिक्षाएं और गौतम बुद्ध की कहानियां हमारे जीवन पर कितना गहरा प्रभाव डालती हैं। आज की इस पोस्ट में मैंने आपको गौतम बुद्ध की 3 प्रेरणादायक कहानियों से अवगत कराया है।

गौतम बुद्ध की कहानियों Best Gautama Buddha Story In Hindi से हमें सिखने को मिलता है कि सफलता का सच्चा मार्ग समझदारी, संयम, और सहानुभूति में होता है। हमें यह याद दिलाते हैं कि अगर हम अपने आत्म-अद्यात्मिक विकास पर काम करते हैं, तो हम अपने जीवन को अधिक सार्थक और खुशियों से भर सकते हैं।

इन कहानियों Best Gautama Buddha Story In Hindi के माध्यम से, हम समझते हैं कि गौतम बुद्ध का संदेश आज भी जीवन में अत्यधिक महत्वपूर्ण है और हमें उसे अपने जीवन में अपनाना चाहिए। इन आदर्श कहानियों के साथ हम सभी एक नए आदर्श और ज्ञान की ओर अग्रसर हो सकते हैं, जो हमारे जीवन को अधिक सामर्थ्यपूर्ण और समृद्धिपूर्ण बना सकते हैं।

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FAQ

गौतम बुद्ध की उपदेशों का महत्व क्या है?

गौतम बुद्ध के उपदेश जीवन के मूल्यों, धर्मिकता, और मानवता के महत्व को प्रमोट करते हैं और सुख और शांति के मार्ग की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।

गौतम बुद्ध की शिक्षा क्या थी?

गौतम बुद्ध ने अपने जीवन में अत्यधिक ध्यान और मेधा का विकास किया था, जिससे उन्हें सम्पूर्ण जीवन की सत्य और जीवन के दुख का अनुभव हुआ।

गौतम बुद्ध की गुफा की खोज

गौतम बुद्ध की महापरिनिर्वाण के बाद, उनकी अश्रूधारा में एक छोटी सी गुफा मिली, जिसमें उनकी अशेष आशेष रखी गई थी। यह गुफा अब एक प्रमुख बौद्ध पिलग्रिमेज स्थल है।

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Hello दोस्तों मैं Chanchal Sagar हूँ। मैं kahaniadda.com इस हिंदी Blog में आपका स्वागत करती हूँ। मेरी कल्पनाएँ, मेरा संवाद और मेरा प्रेम कहानियों के माध्यम से आपके साथ साझा करना मुझे खुशी देता है।

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